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Showing posts from February 17, 2019

वो स्नेह

वो स्नेह कुछ यूँ रहा, कि अब तेरे शब्द भी नहीं रहे। ख़ामोश तु कब से था, मौनमयी हुई है भाषा अब,  तु ही बता!! तेरे अनकहे शब्द कैसे पढ़ूँ ....

तुम भी मैं भी

तु भी था मै भी, साथ सा था सम्मान भी। हँसी भी थी, झुकी पलकें भी। अब तु भी बदल गया, शायद मै भी, किसको क्या मिला? उन सुनी सी बातों से...

तु ही

यूँ बेरंग होकर भी, हर जगह तेरा ही रंग है। ख़ामोश जो दिखता है, चारों तरफ़ उसका ही शोर है। जिसके लिए हम नावजूं रहै, अपने वजूद की जब तलाश की, तो हर जगह वो शख़्स ही मिला ...

कौन था

एक निष्कर्ष जिस पर,  आजतक नहीं पहुँचा , कौन था जो खाईयां बढ़ाता रहा। तु ही था जो सबसे क़रीब था, एक रंचना थी सम्मानों की, कभी तो जताता कि,  वो क्या था जो जचता न था।

पेड

तु पेड़ है, तेरी छांव है, तेरी छांव है दरख्त भी तेरा हक़ है कौन बैठें। उगाये हैं हमने सम्मानों के जंगल, इसीलिये गुमनाम होता हूँ ।। 

तुम भी

उसे दोस्तों  का जूनून था कभी उसने मुझको कहा नहीं वो पास से गुजर गया  मगर कभी उसने मुझको पढ़ा नहीं जो कहा है तुझको तेरी बात पर मन मै तुझसे शिकवा नहीं इस मुश्किलों के पहाड़ को तेरी नाराजगी से गिला नहीं .....

दो छोर

विश्वासो के दो छोर ही सही, कभी तो बहेगी वो नदी। चल तु अपना समुद्र ले आ, मै पहाड ले आवूं । बीती हुई किसी बात मे, चेहरे पे हँसी ले आवूं .......

तुम

बहुत कुछ ख़ामोश है। संवेदनाओं की पीर, या विश्वासों का नीड। वो अनकही बातें, और चेहरे की रगंत। या फिर तेरे कटाक्षों के वो तीर......