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Showing posts from September 1, 2019

डरता कौन है

मंचानों से उड़ना कठिन तो न था पर पंखों को खुद ही तोड़ा है  बिखरने से यूँ तो डरता कौन है  सामना मुश्किलों से उतना भी न था  पर बाँधों को खुद ही खोला है  बहने से यूँ तो डरता कौन है  दर्द भागती यादों का नासाज़ तो न था  मन खुद ही उसे परदेश छोड आया है अकेलेपन से यूँ तो डरता कौन है  ज़िक्र अपनों का महफ़िलों मे छुपा तो न था पर मन को खुद ही एकाकी बनाया है  परायों में तेरी बातों से डरता कौन है 

अपनी दुनियाँ

उन रास्तों पर चलता रहा  ये सोचकर कि तु साथ है मंज़िलों की तलाश नहीं  कभी ख़्वाबों में जीना अच्छा है  किसी से कुछ चाहा नही  ये सोचकर कि तु अपना है हमसफ़र की तलाश नही  कभी ख़्यालों में रखना अच्छा है  शहरां से आजकल दूर ही रहा  है एक छोटी सी दुनिया अपनी भीड़ में यूँ तो जीते हैं सभी  कभी अकेले जीना भी अच्छा है 

ख़ाक जमीं

तमन्नाओं की ख़ाक ज़मीनों पर कुछ उम्मीदें अब भी पलती हैं ख़ामोश हों फिजाएं तो क्या वो चिड़ियाँ अब भी चहचहाती हैं शंकाओ के जलते अंगारों पर औंस की बूंदें अब भी गिरती हैं रोया हो हलधर मन तो क्या वो फसल अब भी लहराती है विफलता  के भारी बोझों पर आस के बीज जमीं ढूंढ लेते हैं कठिन ही रहा हो रास्ता तो क्या मंजिल अब भी पास बुलाती हैं

गुमनाम कहानी

कभी सोचा है बरखा को कि धरती पर गिर रहे आंसू छुई जो औंस आखें नम सी उतर आयी वो एक तस्वीर सी जुबां खामोश करने को कि फिर एक सर्द हवा आयी उड़ाकर ले गई सब आंधी पतझड़ में जो वो बनके याद आयी सिमटती यादों ने खोया है वो 'मन' की सादगी में सच्चाई कलम बनकर वो जब  लिख बैठा कहानी गुमनामियों की रच डाली 

पास देखता हूँ

कभी मुष्क सा छूकर जाना स्नेह की आशा में घुल जाना कभी दरवाजे पे मूरत बन जाना तुझे देखता नहीं बस सोचता हूँ कभी मानस पर छाप छोड़ना गीत ग़ज़लों में घुल जाना कभी किताबो में बस जाना तुझे सोचता नहीं गाता हूँ कभी सपनो में आ जाना ख्यालों में रच बस जाना कभी पहाड़ो में तुझे देखना तुझे गाता नहीं पास देखता हूँ