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Showing posts from July 31, 2022

सोचकर स्नेह

 होती नहीं तय मंजिलें  कुछ रास्ते दिखते नहीं  ये सोचकर स्नेह  कभी कम हो नहीं सकता हो  बात तानों की  या नाराजगी साथी  ये सोचकर स्नेह  कभी चुप रह नहीं सकता  हो बात लम्बी सी  या गुमशुम रहे साथी  ये सोचकर स्नेह  कहीं खो नहीं सकता  हो रात मिलन की  या मन बिछड़ चलें साथी  ये सोचकर स्नेह  कभी मर नहीं सकता  हो समय साथ चल लो  या जी लो दो भर सही  ये सोचकर स्नेह  कभी दब नहीं सकता 

याद बहुत आते हो

 जब शब्द कम हो जाएँ  और भावना दब जाये  तब याद बहुत आते हो  एकटक देखा जाये  नज़र झुकी जो उठी है  ह्रदय कुलाचें खाये  तब याद बहुत आते हो  जब खुशबू छूकर जाये  घर का कोना खाली कदम रुके न जाएं  तब याद बहुत आते हो  जब रुक जाये परछाई  स्पर्श रहा सहमा सा  कोमलता पास न आये  तब याद बहुत आते हो  जब घोर अँधेरा छाये  रातों रात जगा है  मन खाली दर्पण है  तब याद बहुत आते हो  जब सूनापन लगता है 

ख़ामोशी से

 अहसासों की एक किताब है  तेरे मन में दबी हुई  मैं जब पढ़ता ख़ामोशी से  निशब्द हुआ सा जाता हूँ  रोक रही हैं सांसे  मन तुझ ही जाता है  खुशबू घोल मिली तन में  बादळ सा इतराता हूँ  जादू की एक बानी है  तेरे संग में बही हुई  आलिंगन ख़ामोशी से  बेसुध हुआ सा जाता हूँ  खींच रही हैं बाहें आस तुझी तक जाती है  नदिया समी मिली तन में  कोपल सा खिल जाता हूँ 

अपनेपन का पूरक

 अनदेखी की पीड़ा का एक उदाहरण हूँ  हर पल पर जो तुला गया  उस स्नेह का मापक हूँ  छंदों गीतों को अपठित कविता  अधूरे रिश्तों की परिभाषा हूँ  तुझमें समता जीवन तेरी सांसों पर जिन्दा हूँ  बहती सी एक दरिया का ठौर ठिकाना हूँ  हर पल पर जो भुला गया  उस अहसास का आशय हूँ  रंगों चित्रों की अनदेख पहाड़ी  अधूरे रास्तों की मंजिल हूँ  तुझमें समता जीवन तेरी सांसों पर जिन्दा हूँ  खोटी हुई एक भटकी सी मृगतृष्णा हूँ  हर पल जो तका गया  उस सोच सा सिमित हूँ  शब्दों सोचों की बंधी भावना  अधूरे अपनेपन का पूरक हूँ  तुझमें समता जीवन तेरी सांसों पर जिन्दा हूँ