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Showing posts from October 27, 2019

जब सोचना

जो बैठकर सामने  रोया था कभी  अब अकेले में  सिसकियाँ लेता होगा स्नेह और सम्मान की  कुछ बातें तो होंगीं  जिन्हें अकेले में सोचकर  गुनगुनाता होगा  वो जो झूठ सच के जालों मे उलझा रहा हरदम जब अकेले में  अब सोचता होगा चुभी तो होंगी कुछ बातें कुछ मन मे घर कर गया होगा भूले बिसरे ही सही होंठों पर कुछ हँसीं लाता होगा 

तु जैसा है

तु श्याम रंग ही अच्छा है  मन पर चढ़ सा जाता है  धवल चाँदनी से धूमिल  श्वेत चमक चौन्धियाता हैं  तु दीप जलाये ही अच्छा है रास्ता सच्चा दिखलाता  है  झूठ की बुने लाखों जालों में बस पाक पवित्र सा लगता है  तु जैसा है वैसा अच्छा है  सीमित शब्द सा लिखता है  गुमसुम तेरे स्पष्ठ संन्देशो में  कुछ अपनापन सा लगता है