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Showing posts from February 14, 2021

बस्तियां रही हैं न हस्तियां

 मेल मन का  रहा जो मिटेगा  यहीं  छोड़कर बादशाहत जाएगी कभी  यूँ तो साध ही रहा है साधन सही  न तो बस्तियां रही हैं न हस्तियां कहीं  दूरियां जो रही वो घटेंगी यहीं  छोड़कर मन को आहत गया न कभी  यूँ तो बस ही रहा है न चाहत कहीं  न तो बस्तियां रही हैं न हस्तियां कहीं  मौन जो भी रहा  बोलेगा वो यहीं  आह मन में लिए कब गया है कोई  यूँ तो पाया सदा है खोया नहीं  न तो बस्तियां रही हैं न हस्तियां कहीं 

बिखरा हूँ हरपल

  बह जाना बह जाना संग औ रे सागरिया नदिया किनारे पे झूले डाली  अमियाँ छूकर हवा का झौंका कोई निकले  धूलि कणों सा मैं बिखरा हूँ हरपल बढ़ जाना बढ़ जाना वो टेढ़ी डगरिया  सूरज दिखेगा जो माथे हो पसीना  बैठ जाना नीम छाँव घड़ी भर बटोहिया  मीठी लगेगी वो धुप निरहुआ थम जाना थम जाना दो पल पपीहरा  बरखा की बूंदों में छिपी है पिपासा  भीच लेना मुठी तू भी कोमल कदमदल हस्ती है छोटी मैं सिमटा हूँ हरपल   

चल जाना

  कहकर शब्द लिए वापस जो  वो गीत कभी दोहरा जाना  उन  राहों में खाली चलना  वो शाम कभी दोहरा जाना  खुली किताबो के पन्नों पर   वो कहानी पूरी पढ़ जाना  मन्नत के धागों से  बाँधी आस समर्पित कर जाना  खुले झरोखों पर टकती वो  नजर बहाकर ले जाना  सन्नाटे में खुद से कहती  आवाज़ कही दुहरा जाना  लिखकर शब्द मिटाये हैं जो  तुम बतलाकर कह जाना  रिश्तों के धागों की गेहड़ी खोल बोल कर चल जाना