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Showing posts from December 25, 2022

फिर समर्पण

 होंठ चुप थे आखें बंद थी  वो चेहरा कहानी कह रहा था  बाजुओं में बेसुध बिखरे थे बाल  समर्पण एक बानगी फैला रहा था  बेसुध था उत्ताप तनो का  मन में कुछ रच बस गया था  मद्धम सांसें कुछ कह रही थी  समर्पण एक कहानी लिख रहा था  स्पर्श हर ओर था शान्ति को समेटे  अहसास मन रंग भर रहा था  पास बुला रही थी सादगी चेहरे की  समर्पण स्नेह की फुलवारी सजा रहा था 

किरण

 चमकता है तू जग रौशन  किरण है तु उम्मीदों की  नया सा एक जहां अपना  बसा ले एक जमीं अपनी  आ मिल जाय एक हो जा  संगम एक नदिया सी  बहेंगे संग मीलों तक  समुंदर राह जीवन की  वो जो पदचाप छोड़े हैं  छोरों पर समुन्दर के  किसी एक शाम लौटेगा  वो सपनो का शहर बनकर  हकों के रास्ते तय कर  चले हैं जिस डगर पर हम  कोई सुबह तो आएगी  आशाओं की किरण बनकर