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Showing posts from June 14, 2020

खिसकती रेत

जो भूला सा लगा हरदम  उसे दोहरा गया हूँ  खिसकती रेत में फिर से  सपनों को सज़ाता हूँ  जो छूटा सा लगा हरदम  उसे पाता न खोता हूँ  उफनती क्षीर में फिर से  सपनों को तैराता हूँ  जो ग़ैरों सा रहा हरदम उसे मन में सजाया हूँ  धधकती आग में फिर से  ख़्वाबों को जलाता हूँ  जो भूला सा रहा हरदम उसे दिन दिन मैं गिनता हूँ  असंख्यित स्वर्ग में फिर से अंधेरों को भगाता हूँ 

भूला नही

हर सफ़र मे छांव कब है हर तलाश की मंज़िल नही  किसी को कुछ याद नही  कोई कुछ भुला नही  हर झरने पर प्यास कब है रेगिस्तां आँखों में पानी नही  कोई दो कदम साथ चला नही कोई दो कदम भूला नही  हर ख़ामोशी चुप कब है  मन का बबंडर शान्त नही  कोई आवाज देता नही कोई चुप्पी भूला नही  हर स्नेह स्पष्ट कब है हर शब्द बाहर निकला नही  कोई ग़ुस्सा आँसू में बहा गया  कोई आँसू को कभी भूला नही 

आपदा आखों देखी

आपदा आखों देखी   यह 14 जून 2013 की दोपहर थी जब मैं उत्तराखंड अपने घर  पहुंचा- मेरे महान राष्ट्र का एक खूबसूरत हिस्सा, तीर्थयात्रा का स्थान, हिमालय के ग्लेशियरों के लिए जाना जाने वाला-मोरेनेस- हिमनद , फूलों की घाटी का राज्य, कई बिल्डरों के लिए ड्रीमलैंड और सबसे महत्वपूर्ण मेरा मूल स्थान ' म्यरा  दांडी कठियूं  कू देश , म्येरू गढ़देश'। मेरी इस यात्रा में केदारनाथ  जाने की योजना थी।पर  अगले दो दिनों के भीतर मैंने सबसे बड़ी आपदा देखी , वह दर्द मैं हमेशा  महसूस करता हूं, मैंने अपने लोगों की दुखों की सीमा देखी, मुझे प्रकृति की कठिनाई महसूस हुई, मैंने बीमार राजनीतिक इच्छाशक्ति को देखा और अधिकारियों के प्रयासों को मारा हुआ पाया । अगले 6 दिनों में मैं बसुकेदार (भटवाड़ी) से सोनप्रयाग (त्रिजुगीनारायण) (… .. 50 गांवों से अधिक) के बीच कई गाँवों में घूमता रहा। ज्यादातर गाँवों में मुझे औरत की भयानक रोने की आवाज़ और बचे हुए आदमी का गुस्सा सुनाई देता रहा। मैंने सेना के जवानो  और 5 हेलीकॉप्टरों को जाख, नाला, सेरेसी और फाटा के विभिन्न स्थानों पर लोगों को ले जाते देखा है। मैंने अपने सिर और घर के ऊप