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Showing posts from July 18, 2021

प्रेम प्रतीक्षा करवाता है

 शब्द सरल हैं कशिश अनोखी   जीवन है ये नश्वर भी  पिपासा होती तो जकड लेती   ये प्रेम प्रतीक्षा करवाता है  जुग जुग का आलेख पढ़ा है  खोना रोना सब सच है  संगम होता तो बह जाता  ये प्रेम प्रतीक्षा करवाता है  बुनते बुनते स्वप्न स्वाहा हैं  आग रही है तपन भी   जंगल होता तो जल जाता  ये प्रेम प्रतीक्षा करवाता है जर्जर होती दीवारों पर  आस्था के मंदिर सजे हुए हैं प्रसाद होता तो मिल जाता  ये प्रेम प्रतीक्षा करवाता है अपने में अपना सा कब है  कब बंधन में बंधा हैं ये  जिद जो होती तो पा लेता  ये प्रेम प्रतीक्षा करवाता है

कोरी गहरी प्रीत

  कहाँ सपनों में कोई दीन आता है   तभी तो प्रीत पूँजीवाद का पर्याय है अक्सर  जिन्होंने माँगा था सर्वस्य समर्पण जहान में सारा  वोही जन आम से बनकर प्रतिष्ठा  पा गए सारी कटी अंगुली पर धागा भी दरबारों की लाज बचता है  कटी उंगुली ही राज्यों को यहाँ बनवास दिलाती है  जो रहे हैं सदा अविचल अपनी प्रतिज्ञाओं  पर  वोही जन बन गए स्तम्भ मर्यादा के पालनहार बनकर  किसी ने चरण धोये तो कोई झूठन भुला बैठा  कोई छाती बसा बैठा कोई चरणों में जा बैठा  वो जो सर्वस्व न्यौछावर थे वो पत्थर भी तरा बैठे  वोही  जो सरल सच्चे थे सनातन प्रीत कर बैठे  चलो हम पूँजीवादी की अवसरता को ठुकरा बैठे  बन जाए वो बन्दर भी और प्रत्याशा को तरा बैठे  कभी शबरी की कुटिया हो कभी टूटी नाव केवट की  चलो हम बस मनो की कोरी गहरी प्रीत कर बैठे 

बैठा है पत्थर बन

  मैं मीलों दूर आया हूँ कागज़ की नावों पर  मेरा मांझी भी मुझसे युहीं बैठा हैं खफा होकर  वही आशा के बादल हैं जो बरखे सूख जाते हैं कभी धरती लगी खिलती कभी आशाएँ बहती हैं  मैं राही दूर आया हूँ बिना मीलों के पत्थर के  मेरा खाविंद भी मुझसे युहीं बैठा हैं ख़ामोशी में  वही गर्जन है बिजली की अभी तो बर्क बिखरी है कभी धरती की पीड़ा है वही चीरती सी मिटटी है  मैं खाली हाथ आया हूँ बिना कोई चढ़ावे के  शिवालय भी मेरा मुझसे युहीं बैठा है पत्थर बन  वही है प्यास पपीहे की वही क्रुन्दन है सपनों का  कभी कोशिश है उड़ने की ये चिड़िया बिलबिलाती है 

इस कोरे से जीवन

 समझाया खुद को बहुत जरा पूछे  प्रश्न हज़ारों हैँ  हर बार दिया है उत्तर मन ने वो आधा मेरा सपना है  आधे मन की आवाज़ रही है अमरत्व का साथी है  थोड़ा मुझमे घुला हुवा है थोड़ा सा अभी बाक़ी हैँ  वो जो ऊँगली थामे था खुद की खुद के मंगल फेरों पर  कहता है मैं निडर बड़ा तू क्यों देवदास इस जीवन का  हाथों की लकीरों को छुआ है उन हाथों ने  शेष समर है रिश्ता अपना इस कोरे से जीवन का  वो जो खड़ा रहा पहाड़ सा खुद के दायित्वों के खेमों पर  कहता है मैं शश्क्त बड़ा हूँ तू क्यों है दुर्बलता जीवन की  ठोस मनों के आँसू देखे सम्भले से उस यौवन के  शेष अनंत है पीड़ा अपनी इस कोरे से जीवन की  वो बेहोश हुआ खुद, खुद से खुद के समर्पण पर  कहता है मैं स्वतः बढ़ा हूँ तू क्यों हों आश्रय जीवन का  दर्पण में चेहरा देखा है नजर मिलाते नजरों से  शेष आलेख्य हैँ दर्द अपने  इस कोरे से जीवन का 

भाग्यरेखा

 कुछ दूर चल के आया हूँ  कुछ दूर ही है चलना  मेरा सफर जहां में  कब दूर तक गया है  हाथों की खाक छानी  मन से करम किये थे  सर पर खीचीं है रेखा  मैं बुनियाद से हिला हूँ  कुछ सोच लेके आया था  कुछ सोचकर बढ़ा था  मेरे कदम जहां में  कब साथ पा गए हैँ जीवन है मृत्युशैय्या  कर्तव्य कर लड़ा था  रेत पर रची है रेखा  मैं समुन्दर से है मिटा हूँ  कुछ ऊचे उठे गगन में  कुछ पाताल मै धंसा था  मेरी  उन्नन्ति जीवन मै  कब समान्तर ही रही है  संघर्ष है सब हारने का  दौड़ जीत की नहीं है  पहाड़ो की भाग्यरेखा  मैं घाटी में ही धंसा हूँ 

भावों का सफर

 बह गया जो दूर तक एक झौंका याद का  साथ है उन्माद मन का एक भावों का सफर  मील के पत्थर मिले जो टोकते रहते सदा  एक दिन सब ख़त्म होगा मेरे भावों का सफर  थाम ले जो मन जरा एक गुच्छा प्रीत का  साथ हैं चिंतन ये मन का और लम्बा सा सफर  घास के दयार मिले जो वो बुलाते रहे सदा  एक दिन सब सुखना है मेरे भावों का सफर  बाँध ले जो मन जरा एक गट्ठा विश्वाश  का  साथ है यादें हज़ारों एक भावों का सफर  मन के जो मीत है वो याद दिलाते हैं सदा  एक दिन थामना है सब मेरे भावों का सफर ये सफर जब थम गया था साथ चलता तू रहा  ये सफर जब रुक भी देगा तु रहेगा मन सदा  मन के जो हमगीत है गुनगुनाये जायेंगे सदा  एक दिन थामना है सब मेरे सांसो का सफर

अजब ये रिश्ता

 वो खुद को दोषी ठहराकर मुझे मिजरिम बनाता है  वो खुद तो हार जाता है  मुझे सजाता संवारता है  वो मुझपर रहम खाकर ही मुझे जीता सा जाता है  वो हर रिश्ते को आजमाकर मुझे अपना बनाता है  वो खुद भूखा सा रहता है मुझे सबकुछ बनाता है  वो खुद को खो सा जाता है मुझे सबकुछ दिलाता है  वो हर दिन जगता रहता है मेरी रातें सजाता  है   वो खुद दुपहर नहीं खाता मुझे रातों में भी खिलता है  वो खुद परेशान रहता है और मेरी चिंता में रहता है  अजब ये रिश्ता है मेरा वो दयाकर भी निभाता है  खुद पर लाखों बंधन है मुझे उड़ना सिखाता है  वो कहता है सब भूल जाओ फिर रुकने को कहता है 

आधे अधूरे

 सजे तो कान्हा का मोरे मुकुट बन जाय आधे चाँद का भी अपना एक रुतवा है  समां जाय सब स्नेह धरती में तो क्या  सरस्वती का भी अपना एक सम्मान है  दूर हो राधा तो कान्हा की पहचान बन जाय  आधे रिश्तों का अपना एक सम्मान है  वाष्पित हो झील जीव बिहीन हो तो क्या  खारे पानी का अपना एक स्वाद होता है  पक्के हुए हर फल की मांग ज्यादा होती है  आधझड़े फलों की भी अपनी एक यात्रा होती है  मंदिर के किसी कोने में फूल मुरझा जाय तो क्या  उन बीजों का भी अपना एक प्रभाव होता है 

कोशिशें

कोशिशें तो हैं सदा तेरी बात पर अमल रहूँ तु कहे तो जाग लूँ सदा तु कहे तो आँख मून्द लूँ जीवन का एक सत रहा तु रहा है नीव पर खङा ये ईमारतें हैं आस की तेरे बल से मैं खङा रहा  कोशिशें तो हैं सदा तुझे आगोश में समेट लूँ तु कहे तो मांग लूँ सदा तु कहे तो देखता रहूँ जीवन की एक राह है तु ङगर मेरी मंजिल की है ये मील के पत्थर हैं जो तेरी आस पर चलता रहा कोशिशें तो हैं सदा तुझे मानक बना के पूज लूँ तु कहे तो मौन हूँ सदा तु कहे तो बोलता रहूँ जीवन की एक चाह है तु सफर मेरी सांसों का हो ये दीप अब जले हैं जो अखण्ङ से रहैं सदा