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Showing posts from December 20, 2020

लौटने का मन

अब लौटने का मन करता है  मैं शायद दौड़ न सका  ख्याईशें तो थी बहुत  मैं घर भूला न सका  थक गया हूँ रोज की बहसों से  मैं हर रिश्ते को ढों न सका  कहना तो बहुत था सबसे  मैं खुद से कुछ कह न सका  तोड़ती रही सीमायें नजर की  मैं सामाओं में बन्ध न सका  लॉंघां तो सब जा सकता था  मैं वो खूँटा भूला न सका  कुछ यार थे कुछ रिश्तेदार थे  मैं हर अपने को मना न सका  बढ़ तो गया था कुछ दूर शायद! मैं छोटा था, माँ को भूला न सका  अब लौटने का मन करता है  मै शायद दौड़ न सका ...

इलेवन बोफोर्स और लमगौंडी क्षेत्र की क्रिकेट खेल यात्रा

  इलेवन बोफोर्स और लमगौंडी क्षेत्र की क्रिकेट खेल यात्रा यूँ तो लमगौड़ी क्षेत्र अपने सांस्कृतिक कार्यकर्मो की बजह से हमेशा से जाना जाता रहा है चाहे वो रामलीला मंचन हो या अन्य सांस्कृतिक आयोजन पर आज अनायास खेलो की उन दिनों की याद आयी जब सुना कि लमगौंडी की इलेवन बोफोर्स टीम ने दिवाली भणिग्राम में क्रिकेट प्रतियोगिता जीत ली। सांस्कृतिक आयोजनों के समय से वॉलीबाल जैसे कुछ खेलों का आयोजन क्षेत्र में काफी पहले से होता रहता था पर क्रिकेट की शुरुवात का मैं शायद एक गवाह हूँ । क्षेत्र में क्रिकेट की शुरुआत करने का श्रेय मैं पुष्पेंद्र शुक्ल मामा जी और ईश्वरचंद अवस्थी भाई साब को देना चाहूँगा और फिर दिवाली भणिग्राम में गणेश तिवारी जी और स्व देवी तिवारी जी को देना चाहूँगा। क्रिकेट के कुछ शुरुवाती सालो के बाद राजीव पोस्ती भाई साब और प्रभात शुक्ल भाई साब के दिमाग की ये उपज था ये नाम "इलेवन बोफोर्स" जो टीम सालो बाद आज भी क्षेत्र की अपनी टीम लगती है। यहीं थी " मिटटी के शेरों" की टीम। ये नाम नाला में चाय की दुकान चलाते एक बोड़ा जी तब इस टीम को कहते थे क्योकि लगातार तीन सालो तक यहीं टी

चलिग्यें (गढ़वाली ग़ज़ल)

आँसू नी बगदा सदानीं  आँसू सुख्येदा नी मौल्यार ऐं भी जाँदी ठंगरा हरैन्दां नीं  बगणीं सी रैं सदानी आस पछ्याणीं नी उगदी त रै सदानीं माटु ख्वजादीं नीं लगुली सी रैं बढाणीं  टूख पौछेन्दां नीं  बगदी त रै सदानी  दगडी  मिलदा नी बणुल्यूं मा रै सदानी  समणीं दिख्यैंदा नीं चलिग्यैं परांण छोड़ी  खुद मिट्यैंदी नीं आँसू नी बगदा सदानीं  आँसू सुख्येदा नी