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Showing posts from August 11, 2019

रंग चढ़ा रहा

मनों के रास्तें जो अब विरान रहें  किसी के क़दमों की थाप आती रही  ख़ाली सुनसान पड़ी उन जगहों से  कोई नज़र हर बार झांकती लगी  उन उदास रास्तों के छिटके फूलो में  एक मुरझाया सा फूल हँसता मिला  हज़ारों सम्मलित रंगीन महफ़िलों में उसकी सादगी का रंग अब भी चढ़ा रहा पेड़ों से गिरते पत्तों को देखा जब कभी अपनो की वो तलाश हवा मे उड़ाती रही ठिकानों की भटकती तलाश अन्धेरे में  हर बार उसकी रोशनी में चकाचौंध रही 

वो कुरेदा नाम

सपनों को लिखता हूँ  यादों को बुनता हूँ  लम्बा तेरे बाद का शीतकाल यादों को ओढ़कर सोना चाहता हूँ    उगाये गये उन पेड़ों पर  फिर वो नाम कुरेदता हूँ  शिलान्यास तेरे अवशेष बन जायेंगे  वो दर्द ज़िन्दा रखना चाहता हूँ  छिटके गये उन बीजों पर  फिर कोई भारी पत्थर रखता हूँ  रिश्ते सब भुला भी दिये जाय तो क्या वो अपनापन ज़िन्दा रखना चाहता हूँ 

तु खोया नही

तु सुनता भी है  जताता भी है  मानता भी है  भागता भी है  दूरियों मे  हो पर पास है  तु छुपता तो है  पर ओझल नही  नज़र मे रखता है  फेर भी लेता है झकझोरता भी है  खामोश भी रहता है  खो जाता है  तो मिल भी जाता है  तु छुपता भी है  पर खोया तो नही 

खामोश है

बदलते हर पन्ने पर चेहरे वो अंजान हैं किताबों के ढेर मे एक कहानी गुमनाम है  मेंढों की क़तारों पर उगी कुछ घास है  अनाजों के ढेर में बीज कहीं दबा सा है   पथरीलें रास्तों पर ज़मीं कुछ शैवाल है  बरसात के शोर मे गाँव अब खामोश है  तेरी ढीठ आदतों पर मेरी वो बदमाशीयां है  जानता तु भी है मैं भी  बस मन है कि खामोश है     

बची रही

तांकता हूँ उम्मीदों के आसमान को  क्या पता बरस जाये वो नीर उसके ठूंठ बन जाने से पहले  वो कुछ जड़े हरी बची रहीं  सोचता हूँ उम्मीदों के मंज़र को  क्या पता फिर दोहरा जाय वो शाम उसके ढल जाने से पहले  वो कुछ यादें ताज़ा बचीं रहीं  देखता हूँ अरमानों के उस शून्य को  क्या पता फिर नज़र आये वो तारा  उन बादलों के आने से पहले  वो कुछ छापें मनों पे लगी रहीं 

सबका मान है

किसी की दुवाऐं लेता हूँ  किसी की बद्दुआएँ लेता हूँ  सबके लिए मन से नही  अक्सर सच के साथ होता हूँ  कोई चुपके से मन में रखता है  कोई मक्खी की तरह फैंक देता है गिला किसी से भी नही  अक्सर भावनाओं को एकतरफ़ा रखता हूँ  कोई चुराके नज़र सम्मान करता है  कोई लगातार उपयोग करता है  मन जानता सबकुछ है खामोश सबका मान रखता हूँ