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Showing posts from May 23, 2021

रिश्तों की मर्यादा

 तु शबरी के झूठे बेरों सा अब मन को  भाया है  पाषाण हुए इस मन को तूने स्पर्शों से जगाया है  ज्ञान का तुलसी बीज रहा तु बरसों में उग आया है  तु पदचापों का शासन है विश्वासों की मर्यादा है  धनुरेखा का त्याग समर्पण वैदेही सी परीक्षा है  चीरहरण की साड़ी सा तु सर्वस्व लुटाता अर्पण है  चक्र कटी अंगुली का वो मौन सदा दोहराया है   अतिपीड़ा में चक्रव्यूह की आतुर एक प्रतिज्ञा है  तु आँख खोलती बरसों का तप रिश्तों की मर्यादा है  तीरों की शैया पर लेटा भीष्म विजय की संकल्पना है  गोकुल को एक सार सिखाता मुरली की शैतानी है  आन बान मर्यादा वाली धाम ब्रज की राधारानी है  भोजराज के मीरा सी तु कृष्ण समर्पित प्रतिभागी है  तु स्नेह तरसती मन आलिंगन त्यागों की मर्यादा है  मन की किसी दबी आस पर कर्म सिखाता पीपल है 

चलो बाँटे बराबर

 वो लिखता है पढ़ता है वो खोया सा रहता है  बंधा मुझसे वो डोरी में खींचता पास आता है  रही नाराजगी जग से वो मुझको डाँट देता है  वो कहता है चलो बातें नहीं करनी हमें तुझसे  चुप रहता है गुमशुम वो जरा सहमा सा रहता है  हजारों बात मन में है कहना मुझसे चाहता है  कहता है चलो बाँटे बराबर हिसाब रखता है  वो कहता चलो साँझा नहीं करना हमें तुझसे  सजता है संवारता है वो चुपके से तकता है  जुबां पर बात है लेकिन वो खामोश रहता है  कहता है चले जाओ पर अधिकार रखता है  वो कहता है नहीं रखना कोई रिश्ता हमें तुझसे जो जगता था दिनों में वो अब रातों को जगता है आँखे बोलती  सबकुछ वो चेहरा शांत रखता है  कहता है चलो सो जाओ खुद जागा सा रहता है   वो कहता है चलो बातें नहीं करनी हमें तुझसे

सहृदय ही रहा

 भावनाएँ कभी तोली जाती नहीं  विरह गीत तो  गुनगुनाया नहीं  मन ने मन की सुनी मन से ही कहा  मन ने जो भी कहा वो तो सच ही लगा   भेद करना कभी रास आया नहीं  पीड़ा को कभी गुनगुनाया नहीं  मन ने सोचा जिसे उससे ही कहा  उसने जो भी कहा वो तो अपना लगा  तोडना तो कभी रास आया नहीं  मन के विश्वास को डगमगाया नहीं   मन ने  जोड़ा जिसे मन मैं ही रहा  उसने माना न माना वो सहृदय ही रहा 

मन रे !

 ये जो मिलन हुआ मन रे !  मन बीच बसा तब से  लदे भरे सामान  थकी सी वो मुस्कान  सपने संग खुशियाँ और खाली सा मकान ये जो मिलन हुआ मन रे !  मन बीच बसा तब से  बंद पड़े वो  द्वार  साथी भी नहीं कोई पास  नयी सी एक दुनियां  और सुबह सबेरे काम  ये जो मिलन हुआ मन रे !  मन बीच बसा तब से  झुकी रही नजरें  गंभीर किये जो सवाल  नए से लोगों में  दोस्तों का पैगाम  ये जो मिलन हुआ मन रे !  मन बीच बसा तब से  दो पल की खुशियाँ  घंटो भर ताकना  नाराज कभी होना  फिर चुप के हंस लेना  ये जो मिलन हुआ मन रे !  मन बीच बसा तब से  मन बीच पड़े होना  चुपचाप चले जाना  सांसो का मिलना  फिर बाँहों में  भरना  ये जो मिलन हुआ मन रे !  मन बीच बसा तब से 

तेरी मेरी

  उससे और खुद से भी शिकायतें तो बहुत हैं  आज जो कहता है चल जी ले अपनी जिंदगी   टूटी थी ये आस भी बिखरा था एक ख्वाब सा  शहर भी  तेरा ही था तेरी रही अदालतें  रोकता तु दो-घडी पूछता सवाल भी  आज जो कहता है चल तु कभी मुडा नहीं  रोया था ये मन कभी लूटा था वो अमन मेरा नज़र भी तेरी ही थी तेरी रही शिकायतें  एक पल तेरे बिना सूझता था दिन नहीं  आज जो कहता है चल तु कभी रुका नहीं  खोया था चैन भी उडी वह नीड थी मेरी  हक़ भी तो तेरा ही था तेरी रही नवाज़िशें।।। 

समय तो लगेगा

  एक नए रास्ते पर चली है नदी  कुछ समय तो लगेगा इस प्रवाह पर  काटकर तटबंध तोड़े तो हैं कुछ समय तो लगेगा उस गंतव्य तक  एक मन जो सदा जीता अपनों को  रहा  कुछ समय तो लगेगा खुद के जीने लिए  बांधकर तो रखा मन उड़ने को है कुछ समय तो लगेगा इस पहचान पर  एक कण जो रहा लाख भ्रांतियां लिए  कुछ समय तो लगेगा उस संदेह पर  जोड़कर पुल मनों के सजेंगे तो हैं  कुछ समय तो लगेगा इस अवरोध पर।।।। 

आज खुलकर

 अश्क आखों से बहे जिसके  हमारी खातिर  वो जो चुपके से कभी छोड़ गया था हमको  वो जिससे कहने की हर वजह छुपाई हमने  आज खुलकर मैं लिखता भी हूँ कहता भी हूँ  तु ही मन है तु ही रब है तु एक दबी सी ख्वाईश तु ही हर गीत में ग़ज़लों में समायी ख्वाईश  वो जो छंदों की आवली सी बनायीं हमने   आज खुलकर मैं मानता भी हूँ जताता भी हूँ  तुझे पूजूँ तुझे पाऊँ तु एक मांगी सी इबारत  तु ही हर दुआ में आरजू में समायी इबारत  वो जो रिश्तों का एक सम्बन्ध जुड़ा है तुझसे  आज खुलकर मैं अपनाता भी हूँ निभाता भी हूँ