आज खुलकर

 अश्क आखों से बहे जिसके  हमारी खातिर 

वो जो चुपके से कभी छोड़ गया था हमको 

वो जिससे कहने की हर वजह छुपाई हमने 

आज खुलकर मैं लिखता भी हूँ कहता भी हूँ 


तु ही मन है तु ही रब है तु एक दबी सी ख्वाईश

तु ही हर गीत में ग़ज़लों में समायी ख्वाईश 

वो जो छंदों की आवली सी बनायीं हमने  

आज खुलकर मैं मानता भी हूँ जताता भी हूँ 


तुझे पूजूँ तुझे पाऊँ तु एक मांगी सी इबारत 

तु ही हर दुआ में आरजू में समायी इबारत 

वो जो रिश्तों का एक सम्बन्ध जुड़ा है तुझसे 

आज खुलकर मैं अपनाता भी हूँ निभाता भी हूँ 

Comments

Popular posts from this blog

दगडू नी रेन्दु सदानी

कहाँ अपना मेल प्रिये

प्राण