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Showing posts from October 16, 2022

विसर्जन

 मन संगम की गंगा को  घर में सजाना चाहता है  संग रहे जल शीतल निर्झर  मन आधात का विसर्जन चाहता है।  मिट्टी राख लगाए तन पर  तुझमें खोना चाहता है  संग रहे लिपटे हो भुजंग  मन आधात का विसर्जन चाहता है।  बाँध के झोला सरहद पारे यायावर बनना चाहता है  संग रहे न बोझिल सांसे  मन आधात का विसर्जन चाहता है।  दे के सांसे जीवन तेरे  नाम ये तेरे करना चाहता है  संग रहे स्नेह की बातें  मन आधात का विसर्जन चाहता है।