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Showing posts from September 10, 2023

गांव को शहर में लाया हूँ

 मैं गांव को शहर में लाया हूँ  खुले खेत खलिहानों को  मीनारों से ढक  आया हूँ  गंगा में नहाने वाला अब  रौशनी से चौंधियाने लगा हूँ.... मिट्टी तन से सनी हुई जो   इत्तर से ओढ़ आया हूँ  शामों के घर पगफेरै अब  रातों में जगने लगा हूँ .... उम्रदराजी सम्मानों को  नामों से कहके बुलाता हूँ  दोस्तों पर हक़ अपनापन अब  सोच समझ के जताता हूँ  मैं गांव को शहर में लाया हूँ 

कहने और करने में

 शायद बहुत सही है तु जब तु कहता है कि  मेरे कहने और करने में फर्क है मेरी हर बातों में एक झूठ है  हाँ में उतना कहता नहीं  जितना माना है तुझको  उतना जताता नहीं  जितनी उम्मीदें हैं तुझसे  हाँ उतना समय नहीं देता  जितना वक्त कम है मुझमें उतना हक़ नहीं जताता  जितना मानता हूँ तुझको   यूँ है कि उथला है सागर बहुत  बहना है दूर पर सीमाओं ने बाँधा है  रहना है साथ तेरे  और समाकर ख़त्म हो जाना है  मेरी कोशिशों में कमी हो  तो शक सूबे हो मुझपर  और जो मेरे होने से अशांति हो  तो मेरी सांसों को ठहराव मिले जिंदगी   

उदासी

स्नेह के ख्यालों से  कब कौन उदास लगा है  ये बेचैंनी है जो चहेरे को  मायूस कर जाती है एक तेरा होना ही  हर खुशी है मेरे जहां की मैं परेशां हूँ कि गुस्सा हूँ  मन की रौनक तेरे नाम से है उठता है भरोसा कभी जब  अपना कुछ कर न पाये ये घडी परीक्षा की है  चल कुछ दूर साथ तो सही रास्तों में धूप होगी  तो सुहानी शाम भी होगी काखों पर रखी  यादों की कोई गठरी भी होगी  चल हंसकर करते हैं  तय रास्ते कुछ दूर रास्ते की मंजिल भी तु है  और रास्तों के निशां भी तु