कहने और करने में

 शायद बहुत सही है तु
जब तु कहता है कि 
मेरे कहने और करने में फर्क है
मेरी हर बातों में एक झूठ है 

हाँ में उतना कहता नहीं 
जितना माना है तुझको 
उतना जताता नहीं 
जितनी उम्मीदें हैं तुझसे 

हाँ उतना समय नहीं देता 
जितना वक्त कम है मुझमें
उतना हक़ नहीं जताता 
जितना मानता हूँ तुझको
 
यूँ है कि उथला है सागर बहुत 
बहना है दूर पर सीमाओं ने बाँधा है 
रहना है साथ तेरे 
और समाकर ख़त्म हो जाना है 

मेरी कोशिशों में कमी हो 
तो शक सूबे हो मुझपर 
और जो मेरे होने से अशांति हो 
तो मेरी सांसों को ठहराव मिले जिंदगी 

 

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