Posts

Showing posts from August 18, 2019

अपनापन

वो जो तु बस निभाने को बाँट लेता है सूनापन  तेरी मेरी सीमाओं का  बस वो ही है अपनापन  आशायें कहाँ हज़ार थी  जता देता हूँ अवारापन इन अधूरी कहनियों का ये ही है वो अपनापन  दूरियाँ का ये लगाव था  खिंचता रहा वो भोलापन सबके बीच की खींचतान का ये ही है वो अपनापन  हर वक़्त मन में शामिल रहा वो जो है अपना ख्यालीपन  वो जो जगज़ाहिर न हुए  ये ही है वो अपनापन 

बन्धन

लहर हूँ लौट के आऊंगा नदियाँ हूँ बहा ले जाऊँगा  तुम मन कहीं और लगा लो याद हूँ पास बुला लूँगा  नजर हूँ देख के आऊँगा  साँस हूँ साथ में जाऊँगा  तुम खो जाओ गुमशुम राहों में आवाज़ हूँ पास बुला लूँगा  हिमालय हूँ उठ ही जाऊँगा  पहाड हूँ दरक भी जाऊँगा  तुम कोशिशें दूर रहने की हज़ार करो पेड़ हूँ ज़मीं का बन्धन न भूल पाऊँगा 

किताब

सम्भाला है अपने से ज़्यादा  जीवन की हर किताब को  यादों की वो मधुर स्मृति  मन मे घर बनाती रही  किताबों के कुछ पन्ने  जीवन की तरह रहे  पलटे कई बार पर बिनपढें ही रहें  तु भी उन्हीं पन्नों मे  खोयी कोई कहानी रही झकझोरती गई कई बार  पास रहने से कतराती रही  जिया है अहसासों को हर उस किरदार में मूक बनकर ही रहा हर बार और यूँ हारता रहा 

तलाशता रहा

जब सफ़र ख़त्म होने को था   वो यूँ  मकां बनके आया  कोई मंज़िलों को बढ़ चला  कोई घर तलाशता रहा  मंदिरों में घंटी की आवाज हर बार पास बुलाती रहीं  ढेंठ अक्खण धुनि रमायें रहा  मन था कि तलाशता रहा  शाम के कुहरे मे रास्तो की कोशिश हर बार सपनों को भटकाता रहा कदम बहुत हुऐ  तेरे घर चलने को डगमगायें हाथों से कुण्डी तलाशता रहा