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Showing posts from August 4, 2019

लौटती जरुर है

जिसे बिना सोचे ही लिख लेता हूँ  यादों के गहरे समुन्दर में  एक पत्थर सा उछाल देता हूँ  अस्तित्व को तलाश करती कोई आवाज़ तुझसे टकराके लौटती जरुर है  जिसे बिना देखे ही समझ लेता हूँ  सुनसान कमरे के उस आईने में  अपने से प्रतिबिम्ब को झकझोर देता हूँ  अंधेरे को चिरती प्रकाश की कोई किरण तुझसे टकराके लौटती जरुर है  जिसे बिना छुये ही महसूस कर लेता हूँ  अंगुलियों की उस झन्नाहट मे  यादों का एक गीत सा रच देता हूँ  शब्दों के अनसुलझे जाल मे कोई कविता तुझसे टकराके लौटती जरुर है 

सुनहरी प्रभात

किसे जीतकर भी शुकुं नही कोई हार कर भी ख़ुश है  ये बस मनों की बात है  कभी मुश्किलों के पहाड हैं  कभी सुनहरी प्रभात है  कोई पाकर सब अकेला है कोई टूटकर भी साथ है  ये सब विधी का विधान है  कभी स्याह घनघोर रात है कभी सुनहरी प्रभात है  कोई बताकर कुछ जता न सका कोई चुप रहकर भी सब कह गया ये बस समझने की बात है  जब झूठ के पूलिन्दों की हार है  और यहीं सुनहरी प्रभात है 

अच्छा है

ये संशय भी अच्छा है  बन्द आँखों से पढ़ना है  लिखी हुई कहानी का  अन्त न हो ये अच्छा है  ये मौसम भी अच्छा है बिन बरसे बादल उमड़ा है बहती हुई नदियाँ  का  कोई छोर न हो ये अच्छा है  ये साथ ख़ामोशी का अच्छा है  पलकों की नमी सलामत है गरजती गिरती उस बिजली का  वो तेज़ उजाला भी अच्छा है 

तेरे मेरे बीच

तेरे मेरे बीच बना पुल इस अंधड़ में जिन्दा है बस इतना बिश्वास था मेरा बाक़ी कुछ नहीं चाहा है तेरे मेरे बीच की बातें यूँ तो बस ख़ामोशी है 'मन' 'सच्चाई' के पास रहा है बाक़ी सब पहरेदारी है तेरे मेरे बीच की दुनिया यूँ तो बहुत वीरान रही फूल खिले हैं फिर भी उसमे बाक़ी सब काँटेदारी है तेरे मेरे बीच की नजदीकी यूँ तो अक्सर मीलों है दूर ही रहा है हिमालय मेरा बाक़ी साथ चली तन्हाई है ..