सुनहरी प्रभात

किसे जीतकर भी शुकुं नही
कोई हार कर भी ख़ुश है 
ये बस मनों की बात है 
कभी मुश्किलों के पहाड हैं 
कभी सुनहरी प्रभात है 

कोई पाकर सब अकेला है
कोई टूटकर भी साथ है 
ये सब विधी का विधान है 
कभी स्याह घनघोर रात है
कभी सुनहरी प्रभात है 

कोई बताकर कुछ जता न सका
कोई चुप रहकर भी सब कह गया
ये बस समझने की बात है 
जब झूठ के पूलिन्दों की हार है 
और यहीं सुनहरी प्रभात है 

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