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Showing posts from May 24, 2020

शून्य

शून्य सी  पहचान ओढ़े  टटोलता हूँ जब खालीपन को  कुछ ख़त्म हुई डायरियों पर   घिसे हुए कलम की नोक से  पन्नो पर घूरते कुछ शब्द  अनायास कहने की ताक में  खामोश गुनगुनाते हैं  शून्य से सफर पर  दौड़ता हूँ जब पाने की होड़ में कुछ ख़त्म हुए रास्तों पर  धीमे से कदमो की आहट से  झुकी थमी सी कोई नज़र  शिकायतें करती सी लगी  खामोश ताकते हुए 

वो

लौट के कब  आते हैं जाने वाले जो चले गये वो लाम पर हैं  फूलों के दस्ते  वाले और हैं  हम अब भी  वहम पाले बैठे हैं 

मनगीत

मन ने जो गुनगुनाया वो मनमीत है जो खरा सा लगा वोही मनगीत  है प्रीत संगीत था याद रख ना सका यूँ  धुनों से भुलाया गया ना कभी बात ने जो  कहा भावनाएं रही जो बचा सा रहा राह मै खो गया टीस दर्दो में है सह सका हूँ अभी यूँ तेरे लौट जाने की उम्मीदें नहीं कर्म को फर्ज जाना सफलता नहीं भेद अपना छुपाना न आया कभी रास्तों में यूहीं सब बिखरता रहा यूँ तो मानक गड़ाए नहीं हैं कभी 

हाथ

जो पकड़े छूऐ  कभी नही  जो मिले कभी तो डरे लगे  वो उन हाथों का  जादू था जो साँसों में ही  बहा सदा  जो उठे नही  कभी हिले नही  नही पास बुलाया  दूर रहे  वो उन हाथों  का जादू था  जो लकीरों में  कभी था ही नही