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Showing posts from March 20, 2022

बचपन

 आ चल आ संग मेरे तु बचपन में ले जाऊ तुझको  गायों संग केलि करूं मैं  खेतों की मेढ़ चढ़ाऊँ  पोखर का पानी भर दूँ  नालों में पनही बहा दूँ   चावल की पौध लगा लूँ गेहूँ को फसल मसल दूँ  सरसों की  भरी पितिका फ्योंली के फूल सजा दूँ  ताखे पर 'म्वारी' रख लूँ  पानी के जहाज उड़ा दूँ  तारों की साइकिल लेलूँ गावों में दुकान खोल लूँ मिर्च क्यारियां पानी डालूं  पालक की 'मरास' बोत लूँ  कट्घेलों से लकड़ी लेलूँ  भरी गागरी पानी भर दूँ  चावल कुटुं नाज कूट लूँ  बैलों को गेहूँ में घुमा दूँ  ककड़ी चोर गांव की खा लूँ  बंधी हुई बछिया को खोलूं  बान्दर हाँकूँ चिड़ी पकड़ लूँ  हर नीड का बैजा बदलूँ चुपके कुछ पत्थर रख दूँ  हर दिन उनको बढ़ता पाऊँ माचिस डिबिया भ्रमर बाँध लूँ  'डोकों' को मछली समझ लूँ  पैय्याँ के पेड़ों चढ़कर  फूलों की साख हिला लूँ  सावन के झूलें झू लूँ  पराली की रस्सी बना लूँ  'मोल्यों' की मिठाई परोसों  कच्चे ही पोलम खा जाऊ  फूल बुरांस का रंग बना लूँ  मिट्टी थाप खिलोने बाटूँ बैठ जोत के बीच पाट पर  बैलों को सरपट दौडाऊं बाबा का रेडियो रख लूँ  उठा कलम एक पाती लिख लूँ  बांध के म

तस्वीरें

 कुछ तस्वीरें मन में होती  कुछ यूँही खिंच जाती हैं  कुछ रिश्तों की मर्यादा  कुछ अहसास कराती हैं  याद समाये हर पल की  कुछ यादें दे जाती हैं  किसी के नाम किताबें होती  कुछ पन्नों में दब जाती हैं  सपन सजोये हर रिश्ते की  कुछ चुपचाप छुपाई जाती हैं  किसी के नाम पे घर होता है  कुछ घर में सजाई जाती हैं  मधुरम मन की स्मृतियों की  कुछ आगोश समाती हैं  कुछ लगती है अपनी सी  कुछ परायी कर जाती हैं  तस्वीरें हर यादों की  एक कहानी कहती हैं  कुछ मंजिल तक जाती हैं  कुछ राह तांकते रहती हैं 

रंग हूँ

 अहसासों का रंग हूँ दिखता नहीं हूँ  चढ़ता तो हूँ फिर उतरता नहीं हूँ   अहसासों का रंग हूँ सांसों में होता ख्वाबों में होता   विश्वासों का रंग हूँ  यादों में रहता  चढ़ता तो हूँ फिर उतरता नहीं हूँ   अहसासों का रंग हूँ दिखता नहीं हूँ महसूस होता  छपता कहाँ हूँ मिटता नहीं हूँ  चढ़ता तो हूँ फिर उतरता नहीं हूँ   अहसासों का रंग हूँ बसता रहा हूँ सजता रहा हूँ  उकेरा कहाँ हूँ घुल सा गया हूँ  चढ़ता तो हूँ फिर उतरता नहीं हूँ   अहसासों का रंग हूँ