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Showing posts from June 9, 2019

उन रास्तों पर

वो निशाँ आज भी  बाक़ी है उन रास्तों पर जहाँ कभी वो रुठा सा दिखा कभी स्नेह बिखेरता सा लगा  वो मंज़र आज भी फैले है उन रास्तों पर  जहाँ तु कभी ठिठक जाता था कभी मुँह मोड़ सा देता था  वो अनकही बातें आज भी बुलाती हैं उन रास्तों पर जहाँ कभी गुमशुम गुज़र जाता था कभी हँसी बिखेरकर जाता था  वो नज़रें अब भी ताक़ती हैं झांकती हैं उन रास्तों पर जहाँ सबकुछ ठहरा सा है  और तु छोड़ के जा चुका है  

बाबा

जिसके आँसुओं को भी  शायद हमने पसीना समझा होगा  जिसने हमें कुछ बनाने के लिए  सब कुछ अपना दाँव पर लगा दिया वो तुम ही बाबा  जिसने इस सहरा को हरा भरा बना दिया  जिसके घावो को भी  शायद हमने लकीर समझा होगा  जिसने हमें सिखाने के लिए  अपने सब अवसर तांक पर रख दिये  वो तुम ही हो बाबा  जिसने नवजात को पंख लगा दिये  जिसकी बिलखती आवाज़ को भी शायद हमने संगीत समझ लिया होगा जिसने हमें चलाने के लिए  अपनी हर मंज़िल बदल दी  वो तुम ही हो बाबा ये सब कुछ तुझ पर क़ुर्बान है 

एक नीड़ है

एक नीड़ है उम्मीदों का  बसता गाँव है विश्वासों का  तु ही पहरेदार है तु ही मालिक है चाहे तो बचा लेना या बेच लेना  एक पौध है आस की सौंधी ख़ुशबू है अपनेपन की  तु ही माली है तु ही सौदागर है  चाहे तो सवांर लेना या सौदा कर देना एक मन्नत है ‘मन’ की  सच्ची गाँठ है भरोसे की  तु ही मन्दिर  है तु ही पुजारी है  चाहे तो आशीष रखना या पट बन्द कर देना 

बीज

वो  जो शामिल है  हर पल हर जगह भीड़ भरे रास्ते या कि  मन खामोश हो वो जो घेरे है  ‘दो- जून’ वाले जज़्बात  संघर्षों की बिसात या कि  मन सम्मान हो  वो जो व्याप्त है  दुनिया मे मेरी हर जगह  अन्तरमन वाली सोच या कि  मन की हर बात मे  वो जो सिखाता है  जीना या कि बढ़ जाना कोशिशों की दुनियाँ,  मन को जीत जाता है  वो जो प्रकाशपुंज है अंधेरी शामों का  लगन की प्रवृति, मन को सीखा जाता है  वो जो हृदय का जुड़ाव है अपनो मे शामिल स्नेह की ज़मीन में, मन चाहे बीज बो जाता है.

न जाने कब

हर बार बात किसी विराम पर ख़त्म नहीं होती अक्सर कुछ खाली स्थान छोड़ देता हूँ उसके लिए कि शायद कुछ भर दे वो उनमे हर बार सपने किसी मक़ाम पर नहीं पहुँचते अक्सर झट उठकर बाकि छोड़ देता हूँ उसके लिए जाने कब सपनो में रंग भर दे हर बार मन का सोचा सब सच नहीं होता अक्सर आधा सोचकर आशा को रोक देता हूँ उसके लिए जाने कब अपनापन सम्मान दे दे 

मेरे हर गीत में

प्रेम गीतों का सौंदर्य रहा तू 'खुदेड़' गीतों में याद रहा तू प्रकृति का सौंदर्य रहा तू मेरे हर गीत का मीत रहा तू जागृत करता स्वर रहा तू आंसू बहाता स्नेह रहा तू ढाँढस बढ़ता उत्साह रहा तू मेरे हर गीत का प्रीत रहा तू पास बुलाती मंजिल रहा तू दूर होते स्वप्न रहा तू 'मन' की भागती आस रहा तू मेरे हर गीत की रीत रहा तू दूर तिमिर का सूरज रहा तू घनघोर रातों का चाँद रहा तू आशा की एक किरण रहा तू मेरे हर गीत का छंद रहा तू 

अवशेष

जब भी आँखें मूँदीं शांत चित ख़्याल नमन इरादों की हलचल कर तु चला आया है इस यादों के खण्डहर मन में  जब भी मन ने आस लगायी वन जंगल पहाड़ों की  चुपके से तु चला आया है इस विरान शहर से मन में  जब भी ज्ञान चक्षु ने क़लम उठायी  कविता गीत रचाने की  संगीत बनकर चला आया है  इक ख़ामोश धुन बनकर मन मे  सार इस जीवन का लिखना चाहा  खोये पाये लेखे मे इतिहास बनकर चला आया तु बहीखाते के पुराने अवशेषों में

हल्का हूं

तेरे बीते सालों  की सौग़ातों से  वो मुड़कर दो पल रुकने से  तेरी अनकहीं बातों को सुनने से मन हल्का हो जाता है यूँ किताबों मे तेरा चेहरा आने से घूरकर मुझे ‘कुछ भी’ कहने से  तेरे स्नेह के चार शब्द पढ़ने से  मन हल्का हो जाता है तेरे नाराज़ होने की यादों से तुझे मनाने की नाकाम कोशिशों से तेरे लोगों से छुपाते अपनेपन से  मन हल्का हो जाता है

सबसे पास

धरती पनघट साँझ सबेरे  मन मन्दिर आँगन मे मेरे  तु रचा बसा संसार है  तु ही ‘मन’ की आख़री पुकार रहा है  भ्रम सच्चाई सादगी तर्पण  मन समर्पण ख़्यालों मे मेरे तु छोटी सी मूरत ही रहा है  तु ही ‘मन’ की अनसुनी आवाज़ रहा है  सत्य झूठ धोखा अपनापन  ख़ामोश रहै हर जज़्बात मे मेरे  तु फलता विश्वास रहा है तु ही ‘मन’ के सदैव साथ चला है  दूरियाँ नज़दीकियाँ होना न होना अदृश्य रहै हर ख़्वाब मे मेरे  तु पहाड़ों सा अपना लगा है  तु ही ‘मन’ के सबसे पास रहा है 

यादें बोलती नही

वक़्त अक्सर ख़ामोश रहता है  अपनापन गुमशुम सा रहता है यादें बोलती कहाँ है सबकी दुनियाँ अपनी है पाने को  बीते पलों का ज़िक्र दबा सा है कल अनायास ख़्यालों मे रहता है  पीड़ा बोलती कहाँ है सबकी अपनी बिवांरिया है छुपाने को वो घर वो छज्जा सब विरान है  खिड़कियां जालों से भर सी गयीं होंगीं  सूनापन दिखता कहाँ है  सबके अपने गुमखाने है दबाने को ...

जो बिछड़ गये

वो बिखरे पत्तों सा ही  रहा जीवन बिछड़े तो शायद फिर मिल न सकें यूँ इर्द गिर्द उड़कर अपने बिछड़ गये  डर ये नही कि अवशेष बन जायेंगे  यूं कहीं किसी के काम तो आयेगें  बस जो साथ छूटें तो अपने बिछड़ गये छोटा ही सही पर जीया है वो जीवन  जुड़ के रहे उनसे तो सम्मान से रहे  मन में हमेशा रहेंगे अपने जो बिछड़ गये

समर्पण

वो कुछ कहता नही  फिर भी  उसकी दुआएँ पहुँच जाती है वो सीमित ही लिखता है फिर भी  उसके मन की आवाज़ पहुँच जाती है  रिश्ते का कोई नाम न है फिर भी उसका अपनापन छूँ ही जाता है  असल मे तो वो मिला ही है कुछ पल पर वो साथ चलाता ही लगा हर पल  उसका पहला हक़ है ‘बन्दगी’ पर वो अपनों के हर रुप मे शामिल है  दूरियों मे रहा हमेशा फिर भी  घर में याद बनकर समाया है कहीं