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Showing posts from September 29, 2019

ये पहेली हल हो जाएगी

हर माहौल में याद रहेगा अहसास तुम्हारे होने का तुमको पा जाने का सुख और दर्द तुम्हारे खोने का शीत पहाड़ी सुबहों मे वो हाथ हाथ मे याद रहा ठंड मे उलझे होंठों मै तेरा नाम हमेशा याद रहा कहनी थी दो बाते तुझसे तो शंका ख़त्म हो जाएगी स्नेह रहा या आकर्षण सब दुविधा हल हो जाएगी ठूंठ खड़ी सी आशाओं मै एक बेल लपेटे बढ़ती हैं तुम और मै ही दूर दूर हैं बाकि दुनिया अपनी है सीना अपना छलनी होगा सांसे सब थम जाएँगी जीवित हूँ  या नश्वर हूँ ये पहेली हल हो जाएगी 

चल मन! दूर कहीं

वो जो  सिखा गया खुद उसे याद नहीं है समय के थपेड़ों में वक्त किसी के पास नहीं है जो मनशक्ति सीखा गया वो ऊर्जा झूठ नहीं है शून्य के बाज़ारों में अहसास किसी के पास नहीं है जो सूर्य सा चमक गया वो परछाई में साथ नहीं है अकेलेपन के विचारों में झूठी स्वांतना किसी के पास नहीं है आंधियों में ख़ामोशी जाता गया सांसो का वो बंधन साथ नहीं है चल मन! दूर कहीं पहाड़ो पर हिमालय सी शांति यहॉं नहीं है

सजता कब है

शाम कभी उन राहों पर नज़र तांकती रहती थी  हवा कभी उन राहों  की छूकर चुपके बह जाती थी  झुरमुट के कोने पर कोई चाँद निकलता रहता था  सरपट दौड़ लगाती आशा कोई मन अधीर रह जाता था  शाम सुहानी बंजर होती धरती आस जगाती कब है मन मन्दिर का कोई कोना  श्याम रंग से सजता कब हैं 

कब

हिमालय मुझको कब होना था! रावण सा बाँहें फैलाकर  सारा जग जीतना कहाँ था! शबरी के झूठे बैरों सा   जटायु के कटे पंखों सा  सहृदय निश्चय त्याग कर सकूँ  लक्ष्मण रेखा पार करना कब था