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Showing posts from July 29, 2018

मै उत्तराखंड का उपनल कर्मी

मै उत्तराखंड का उपनल कर्मी !! (एक याद 'अजन्त' के पानी के नाम) 'अजन्त', मेरे बचपन का सबसे एक सबसे प्यारा दोस्त गांव घर में पानी ठीक करते करते कब उपनल कर्मी बन गया पता नहीं चला. गावो में सरकार द्वारा प्रदत पानी को शायद (इल स डी) का पानी कहा जाता था पर मेरे लिए वह सरकारी पानी 'अजन्त' का पानी ही था.... जो टाइम से आता था और टाइम से जाता था. गावो के अन्य नलों को तुलना ये अजन्त का पानी बहुत तेजी से आता था और तेजी तथा किसी पावर की मिलावट की वजह से सफ़ेद सा होता था. उन दिनों गां व में पानी के अपने निजी कई नल थे और साथ मै गांव के प्राचीन पानी के स्रोत (धारे और बोडियां) भी पानी से लबालब रहते थे. इसलिए तब इस अजन्त के पानी की ज्यादा जरूरत नहीं होती थी पर फिर भी जब भी गांव में पानी की थोड़ी सी भी कमी हुई तो 'अजन्त' के पानी की सबको जरूरत होती थी. बचपन से लेकर स्कूल के दिनों के बाद से उच्य शिक्षा तथा रोजगार के लिए देश से विदेशो की यात्रा की और एक तरह से पहाड़ो और देश से पलायन कर १२-१५ सालो से विदेश ही घर बन गया. फिर भी हर साल जब भी घर जाना हुआ वह अजन्त का पानी हमेशा

दगडू नी रेन्दु सदानी

बात कोई 1994-95 की होगी, इन्ही बरसाती दिनों की जब बस में ऋषिकेश से पहाड़ो का सफर बड़ा मुश्किल सा लगता था. जगह जगह पहाड़ खिसके होते थे और एक दिन का सफर दो दिन का हो जाता था.  क्योकि मै ऋषिकेश से बस में बैठा था इसलिए मेरे पास सीट थी, नहीं तो तब पहाड़ी बसों में नेगी जी के " चली भे मोटर चली...." गाने जैसी ही हालत होती थी. थोड़ा पढ़ाई और संस्कारो की वजह से उस दिन मुझे कुछ बार अपनी सीट किसी 'वोडा' या 'बोडी' के लिए देनी पड़ी थी.  ऐसे ही बारिस में रुकते चलते बस श्रीनगर से आगे बढ़ी , वही कही सड़क किनारे से बारिस में 'खतखत' भीगी कोई लड़की बस में चढ़ी. बरसात में बुरी तरह भीगी और ठंड से कपकपाती लड़की को में अपनी सीट दे दिया . उस शौम्य से शरारती चेहरे वाली लड़की से उसका छोटा सा छाता पूरी तरह से बंद नहीं हो रहा था तो वो छाता उसने हमे पकड़ा दिया और मैंने जैसे तैसे उस छाते को बंद कर दिया. बारिस में पूरी तरह भीगी लड़की, बुरी तरह ठंड से काँप रही थी तो मैंने अपना हल्का पतला जैकेट उतारकर उसे दे दिया और उसने भी बिना किसी ना नुकुर के उसे पहन लिया. तब करीब दो घटे के उस सफर