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Showing posts from June 30, 2019

असर करते गए

कुछ दूर जाते लगे कुछ पास आते लगे ये जीवन चक्र था कोई घुमाते गए कोई साथ चलते लगे कुछ कहते हुए लगे कुछ गुमशुम से रहे आवाज़ों की भीड़ में कोई चिल्लाते गए कोई चुपचाप असर कर गए कुछ पास रहते रहे कुछ दूर मुस्कुराते लगे भावनाओ की जोर आजमाइश में कोई तमाशा बन गए कोई तमाशबीन बनकर चल दिए कुछ अच्छे लगते रहे कुछ खुद ही पराये हो गए स्नेह के सच्चे सम्मानों में कोई दिखावा करते गए कोई असर  करते गए 

अपनों सा

तेरी खुशियों में  खुश होना तेरी उदासी में उदास रहना रूठने पर मनाने की नाकाम कोशिशें पता नहीं तू कब अपनों सा हो गया हर बात अधूरी छोड़ देना फिर हर पल तुझे सोचना दूर रहकर पास जाने की अधूरी कोशिशें पता नहीं तू कब अपनों सा हो गया अब बिना सोचे ही कह जाना कभी सीमाओं को तोड़ जाना हर गांठ को जोड़ने की नाकाम कोशिशें पता नहीं तू कब अपनों सा हो गया न सोचूँ फिर भी मन में रहना न चाहूँ फिर भी पास पा जाना परछाई सा साथ देने की अधूरी कोशिशें पता नहीं तू कब अपनों सा हो गया

कहाँ है

मन जब शून्य हो विचार जब खामोश हो  यादों से वो चेहरा धूमिल हो तब अनुभूति ने आवाज़ दी कि तु कहीं खोया है आज  संदेश जब रुके हों तार मनों के उखड़े हो  नज़रों मे धुन्ध का ग़ुबार हो तब स्मृतियों का संदेश आया कि तु कहीं खोया है आज  पवन जब थमी सी हों साया बादलों का उमड़ा हो सूखी धरती पर स्नेह का अकाल हो  भावनाऐं ख़ामोशी  से बता गयी  कि तु कहीं खोया है आज 

सन्देशों के रंग

सन्देशों के रंग अपने संग भावनाओ के द्वार पर  कभी बोने नही लगते  जो चढ़ जाय तो उतरते नही  दूरियों को क़रीब से समझा मनो की हार पर  कम कब हुआ नातों का असर  जो चढ़ जाय तो उतरता नही  स्नेह के निशान गहरे होते हैं  अपनो के खोने पर  कभी पराये नही लगते  जो पास लगें वो भुलाये नही जाते  तु अकेला वो शख़्स है  जो पहल न भी करे तो  कभी दायरे से बाहर नही लगता  जो मन मे हो वो भुलाये नही जातें

टूटते तारे भी हैं

टूटते तो तारे भी हैं  दूसरो की मन्नतों के लिए टूटते तो पहाड भी हैं सही ढाल पाने के लिए  झुकते तो पेड़ भी है दूसरों के अन्न के लिए  तोडे तो फूल भी जाते हैं भगवान पर चढ़ाने के लिए  गरजते तो बादल भी हैं मिट्टी की सौंधी ख़ुशबू के लिए  गुस्सा तो माँ भी होती है  रूठों को मनाने के लिए  यूंही बिखरने से डरा नही  ना सहमा हूँ गुस्सा या झुकने में  हताश टूटा हूँ जब तो बस  अपनो को  खोने के बाद 

फिर लौटाओगे

उलसाये पेड़ों को देखा  पानी को तरसते शहर को देखा तो उमड़ते बादलों से पूछा क्या अब  तुम भी बरसोगे?  कमते नदी के स्तर को देखा ख़ाली बर्तनों की रेहडी को देखा सूखते कुऐ से फिर पूछा  क्या अबके फिर तरसाओगे  उन बरसाती झरनो को देखा  किसी के बहते आँसुओं को सोचा  पानी मे दौड़ते उन बच्चों से पूछा क्या मेरा वो कल फिर लौटाओगे 

मेरे गीत

जब शब्द नही निकलते तो लिख लेता हूँ मैं  चुपचाप तुझे सोचते हुए  मैं नही मेरे गीत बोलते हैं  चुप तुम भी हो हम भी हैं और शब्द निकलते नही  कहना भी है सुनना भी है इसी उम्मीद मे लिखे जा रहा हूँ  तुम सपने सच करलो  मै भी सपनों की राह देख लूँ  कुछ तुम भूल जाओ मै याद रखूँ  और इन बहती भावनाओ के गीत रच दूँ  

सुना है

वो जो निजी संदेश थे  तेरे मेरे लिये कल के अख़बारों की  वो सुर्ख़ियाँ सुनी हैं मैंने  तालों मे ही बन्द  रहनी थी जो तस्वीरें  हर गली नुक्कड़  पर  इश्तिहार सी देखी है मैंने  वो जो भावनायें हैं  सिर्फ़ तेरे और मेरे बीच  कल दूर बसे लोगों से बाजारों मे सुनी थी मैंने  जिसे अथाह परिश्रम कर पाया था  हमने ठौर कर  कल सुना कि लोग  परोसकर चले गये थे तुम्हें  चलो ठीक भी है साथी तेरे पर जानता तु सब कुछ है  विश्वास ग़ैरों का जरा  कम ही किया है हमने  बस डरता हूँ मेरी बुलन्दियों का वो किल्ला ढह न जाय  और विश्वासों का वो पुल अबकी बारिश मे बह न जाय

दर्पण

‘मन’ मन मेरा दर्पण है जो देखोगे दिख जायेगा  झूठ लिखोगे झूठ दिखेगा  सत सत सच को समर्पण है तन तन मेरा अर्पण है जो कहोगे कर जायेगा  दंश रचोगे दंश मिलेगा लख लख तुमपे तर्पण है अंग अंग मेरा नश्वर है जो कहोगे लुट जायेगा  घिन करोगे घिन मिलेगा तर्स तर्स न्यौछावर है  तज तज मेरा रोम रोम है  जो कहोगे मिट जायेगा  साथ रहोगे साथ चलेगा  व्यय व्यय जीवन मन्तर है 

स्नेह दायिनी

वो नदी जो हिमनद के नीचे बहती पाक लगी कभी तेज मन्दाकिनी कभी सरल सरस्वती लगी यूँ झूठ के झरनो सी पेश की गयी है हरवक्त कि रुक-रुक कर शंकाओ कि फसल उगती रही न बहा हूँ उस नदी मे न कभी गोते लगाए हैं न ही भीगा हूँ उन झरनो में कभी पीया हूँ जिसे अमृत समझकर पूजा हूँ जिसे अविरल मानकर अपनी सी बहती एक धार है स्नेह दायिनी ही मानी है सदा क्यों तुम विचारो का मैंला उड़ेले जाते हो 

कभी कभी

कभी तुझे सोचना  कभी भूला सा मान जाना  कभी संदेशों के सहारे  तुझे पास पा जाना  मन ने की हैं बातें बहुत  कभी तुझे अपना मानना  कभी परायों मे गिन जाना  कभी समर्पण का भाव कभी अपनो सा लगाव कभी तेरी नज़ाकत के साथ तुझे टटोल जाना  मन उड़ा है हर सरहदों के पार  कभी तेरी सीमाओं की हद   कभी अपनी रेखायें खींच जाना  कभी यादों के अनसुलझे पड़ाव  कभी तेरी नज़रों के सवाल  कभी वो शंकाओं वाले दिन  सबसे दूर हो जाना हर तरह से तोला है खुद को  कभी खोया चाहा है  तो कभी पाया है तुझको 

छाप छोड़कर

वो डूबते सूरज का दिन वो उफान मे डूबती नाव की शाम वो मकां कभी भुलाये नही जो खण्डहरों मे तब्दील हुए  वो मनरंग कभी धोये नही  जो छाप छोड़कर चले गये वो घर के कोने मे तेरी ख़ुशबू  वो आशीषों वाली खुशी की शाम वो महल जो कभी सजे नही  वो किले जो कभी उजड़े नही  बिखरे क़दम कभी मिले नही  जो छाप छोड़कर चले गये

कोशिशों के हाथ

समय का साथ और अपनों की याद यूँ तो हरवक्त साथ होती है पर आगे बढ़ने की सीख हमेशा उन्ही से आती है मन की बात और परायों की लगायी आग यूँ तो हरवक्त शंकाओ में होती है पर दर्दो की विशात हमेशा पलती उन्ही में है कोशिशों के हाथ और रिश्तों की बुनियाद यूँ तो नाज़ुक ही होती है पर विश्वासों की आस हमेशा पलती उन्ही में है 

पराया ही सही

तू डूबता ही सही फिर भी अपना सा लगा इसी उम्मीद में हज़ारों सुबह देखी इसी उम्मीद में हज़ारों शामें खोयी तू दूर ही सही फिर भी पास सा लगा इसी उम्मीद में तुझ तक पहुँचा इसी उम्मीद में दूरियों में रहा तू खामोश ही सही फिर भी बोलता सा लगा इसी उम्मीद में बात कर गया इसी उम्मीद में सपने सजा गया तू पराया ही सही फिर भी मन के सबसे पास लगा इसी उम्मीद में कभी तुझे खो दिया इसी उम्मीद में तुझे पा सा लिया