सुना है

वो जो निजी संदेश थे 
तेरे मेरे लिये
कल के अख़बारों की 
वो सुर्ख़ियाँ सुनी हैं मैंने 
तालों मे ही बन्द 
रहनी थी जो तस्वीरें 
हर गली नुक्कड़ पर 
इश्तिहार सी देखी है मैंने 

वो जो भावनायें हैं 
सिर्फ़ तेरे और मेरे बीच 
कल दूर बसे लोगों से
बाजारों मे सुनी थी मैंने 
जिसे अथाह परिश्रम कर
पाया था हमने ठौर कर 
कल सुना कि लोग 
परोसकर चले गये थे तुम्हें 

चलो ठीक भी है साथी तेरे
पर जानता तु सब कुछ है 
विश्वास ग़ैरों का जरा 
कम ही किया है हमने 
बस डरता हूँ मेरी बुलन्दियों
का वो किल्ला ढह न जाय 
और विश्वासों का वो पुल
अबकी बारिश मे बह न जाय





Comments

Popular posts from this blog

दगडू नी रेन्दु सदानी

कहाँ अपना मेल प्रिये

प्राण