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Showing posts from September 24, 2023

हमारा

वेदना भयभीत होकर  साँवन्तना मन दे गयी  हम समर्पित कर चले  एक निशानी साथ की है कहाँ मुमकिन जहां में  हर फूल यौवन तक बढ़े यूँ ही नहीं अर्पित रहे हैं  गंगा में कुछ  दीप भी  समर्पण की साख पर  यातार्थ जीता है सदा  यूँ ही नहीं शापित रहे हैं  पत्थरों के झुण्ड भी  हम अमरबेलों से कहाँ  सब जड़ों तक बँध सके  रात की घनघोर कालिख आंसुओं में बह गयी