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Showing posts from February 5, 2023

सदा तकता रहा

 घोर काली रात बदरा आसमां रोता लगा  सोचता तुझको रहा  और मन यहाँ विचलित रहा  दर्द की रातें कराही या अगन हो देह की  मांगता तुझको रहा  और मन इरादा कर गया  एक तु जो तान छोड़े  या तेरी मजबूरियां  ये बजूं तुझ तक रहा  और मन सहमता ही गया  बेमेल से जो हम मिले हैं  अब दूरियां सहती कहाँ  हक़ दिया है यूँ तुझे ही  और मन सदा तकता रहा 

दिन तेरे बिन

 जो दिन तेरे बिन गया  ठहरा सा जहाँ लगा  रातों की ख़ामोशी सपनों का जहाँ ढला  आजमाऊँ किसको मन मेरे  द्वंदों की आजमाइश में  रूकती  सांसें ढूँढती थमता सा समय लगा  साथ नहीं माँगा कोई  विकल्पों की तलाश नहीं  मन घोर अँधेरा फैला था  ख़ाली सा जहाँ लगा  तेरा जाने तु हमदम  गुजरा अब मेरा नहीं  ख़ामोशी तेरी तु जाने  मुझको मेरा डर रहा 

शून्यता है जिंदगी

 एक हिसाब है जिंदगी  जिसे न तु कर पायी  न मैं कर पाया  एक बहम है मन का  न तु समझा पायी  न मैं समझ पाया  खाली से दरीबों में  भटका है मन अक्सर  न तु सजा पाया  न मैं सजा पाया  एक पहाड़ है जिंदगी  न तु चढ़ पाया  न मैं चढ़ पाया  एक किताब है मन की  न तु पढ़ पाया  न मैं पढ़ पाया  सूखी सी नदी में  बहा है अक्सर  न तु किनारे आ पाया  न मैं पार कर पाया  एक शून्यता है जिंदगी  न तु भर पाया  न मैं भर पाया  एक आस है मन की  न तु समझ पाया  न मैं समझा पाया 

समां गयी

 कोमल कमलदल सकुचाई सी  पीर हमारी मिली मुझे  समां गयी उर अधरों से  सार समर्पण सीखा गए  उंगुली हाथ हथेली छुई  पथि वो आटा मेरे लिए  फूल मुलायम पंखुड़ियों सी  हाथ वो रेखा बना गए  कागज़ की कोई नाव तैरती  डूब पहाड़ समुन्दर हम  ज्वार थमा निशान से छूटे  रचते रहे हैं मेहँदी हम  समय सदा से काम ही रहा है  चितचोर रहा मन मीत मेरा  दो पल की सब खुशियां बाँटी और गीत लिखना सीखा गए 

मेरा होकर

 धरती खुशबू साथ लपेटे  सज आता है मेरे लिए  लोक लाज की देहरी लांघें  चल पड़ता है साथ मेरे  खुद उम्मीदें घर में रखकर  फिरता संग है राह मेरे  सुहागिन का सिन्दूर चढ़ाये  करता समर्पण मेरे लिए  सपने जहाँ कठिन से लगते  कदम बढ़ता साथ मेरे  खुद की खुशियां छोड़ के आता  दुनिया रचता साथ  मेरे  अहसासों की नाव खेवता  मुझे तैराता मेरे लिए  दुःख का मेरे साथी बनता  सुख की सारी प्रीत लिए  मेरा होकर मुझमे खोता  खुद की न परवाह किये 

थोडी सी

थोडी सी कुछ धूप पोटली  भरकर रख दूँ नाम तुम्हारे ताखे रख दूँ उजले जुगनु  यादों की एक ग्येड बाँध लूँ चाँद रहा है दूर सदा से  धरती छोर उम्मीद लगाये जल जाये वो जुगनु बन लूँ  धूप पोटली काखे रख दूँ मन्दिर की एक मूरत है तु  पुजुँ तुझको या सांसे रख दूँ जीवन तेरे नाम लिखा दूँ  थोड़ी अपनी पहचान बचा लूँ मन में रमा समां है तू ही  आवाज़ मनों की लौट के आये  शब्दों को परिभाषित कर दूँ  तुझमे अपनी साँस बसा दूँ