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Showing posts from June 27, 2021

जब तु नहीं है

 जब तु नहीं है तो कोई बात भी नहीं है  ख़ामोशी का आलम है रात और अँधेरी हो जाती है  जब तु नहीं है तो हर काम भी अधूरा है  आखें पढ़ती है कुछ अंगुलियां कुछ और लिख जाती हैं  जब तु नहीं है तो सांसें भी बिचलित है  धड़कती हैं मन में मेरे और सोच कहीं और जाती है  जब तु नहीं है तो नींद भी नहीं है  आखें बंद होती नहीं और सपना दिखा जाती हैं  जब तु नहीं है तो वो स्पर्श भी नहीं है  मखमल की जमीं भी  पथरीली  सी लगती है  जब तु नहीं है तो इर्द गिर्द कुछ नहीं है  छोटे से इस  बगीचे में भी एक मरुभूमि लगती है  जब तु नहीं है तो जीवन भी नहीं है  सांसों की खैरात में भावनाओं की मौत लगती है 

सच होंगे सपने सारे

 चेरी के पत्तो की मिठास चखी है  चिड़िया के नीड़ों से आवाज़ सुनी है  वो खुशबू दिखती है और रंग सुनाई देते हैं  झरने को रंगता पाया है माटी के से रंगो में  पत्थर को बढ़ने के आशा रखी है स्वरसंवेद लगे हैं झींगुर की आवाजों में  बादल को बहते हैं और पानी थमता देखा है      मैंने इंद्रधनुष देखा है भरी हुई दोपहरिया में  मौन को सुनने की आदत रखी है अकेले में खुद अक्सर आवाज़ लगायी है  तुझको वापस आते और भरोसा करते देखा है  सपने बुनना सीखा था माँ धरती की गोदी में ।   सच होंगे वो सपने सारे सच बोलेगा चिल्लाकर  सहारा बन चलता रहा अदृश्य कोई साथ में 

मानता है

 वो भी मानता सहर्ष सा मैं भी जानता सदा से हूँ  वोही डर रहा यहाँ भी है वोही डर वहां रहा सदा  सहमे रहे कदम सदा हर भावना के मोड़ पर  मैं न मैं रहा न तू तू रहा ये देह एक सा लगा  वो भी मानता है कुछ तो है मैं भी जानता सदा से हूँ  वो भी पास मेरे आ गया मैं भी पास था रहा सदा  सहमे रहे ये लब सदा हर बात की तलाश में  कह गया मैं तू सुना ये विचार एक सा लगा  वो भी मानता है लाम है मैं भी जानता सरहद पे हूँ  वो भी दोस्त सा बना मेरा मैं कहा दुश्मन रहा सदा  सहमी रही  कसम सदा हर डर के एक छोर पर   मानता तो  मैं भी हूँ तू मानता लगा सदा  

स्पर्श तुम्हारा

 बुग्याली घासों पर कोई बर्ह्मकमलदल खिलता है   आशाओं की कोमल कोपल मन को युहीं जगाती हैं   तु कहता जब  स्पर्श तुम्हारा अपनों सा ही लगता है  तु मुझमे में तुझमें समाता कलरव पीड़ का झरना है  वातायन पर हल्के झोंके रोम रोम उकसाते हैं  अमियाँ की जो छाँव तले मन हर्षित सा होता है  मैं कहता खुशबू में तेरे अपनापन सा लगता है  तु मुझमें मैं तुझमें खोता गहराता सा कानन है  धुन एक मड़राता भावरा राग प्रेम का गाता है  फूलों सा जीवन जीने को मन थोड़ा ललचाता है  हम कहते जब डर का आलम मन को घेरे रहता है  तु मुझको मैं तुझको तकता खोया सा एक चातक है 

एक तूने आके

 निशाँ तो मिट रहे हैं पर रंग गहराता गया  छोटा सा एक रास्ता मक़ाम तक लाता गया  सदियाँ से यूँ तो हम भी मुहाजिर ही रहे  एक तूने आके घर को घर सा बना दिया  रिश्ते छंट रहे हैं पर अपनापन दिखने लगा  बातों का एक दौर अंजाम तक लाता रहा  सदियाँ से यूँ तो हम  भी अजनबी ही रहे  एक तूने आके हमको हमसा बना दिया  सांसे तो थम रही हैं पर जीवन जगाता ही रहा  आशाओं का एक झौंका मंजिल तक आता लगा  सदियों से यूँ तो हम भी एकाकी ही रहे  एक तूने आके हमको अपना सा बना दिया 

जीवन

एक मन है मेरा पास कहीं  एक मर्यादा है जीवन है साथ अगर कुछ चल न पाये राह दिखाते जीवन की एक कर्तव्य मार्ग का साथी है एक मनन रहा इस जीवन का  खोने को कुछ पास नही आस सजाते जीवन की एक राहों का साथी है एक राह सजाता साथी है अपनों से में शामिल हैं अंग बने इस जीवन की

समर के बीच में

 मैं समर के बीच में भी प्यार का एक गीत लिखूंगा  आज की हर एक कहानी मैं प्रणय के साथ लिखूंगा  तू ही है मन का मुसाफिर आस का एक दीप है  जो कभी जलता लगा बुझता लगा मेरी प्रीत है  मैं संदेह के घेरों में भी एक प्रेम की पाती लिखूंगा  हार हो या जीत हो पर मैं समय के साथ लिखूंगा  तू ही है मन का हिमालय आखिरी मंजिल सी है  जो कभी पाता लगा कभी खो गया मेरी प्रीत है  मैं सभी रिश्तों से हटकर प्रेम का किस्सा लिखूंगा  कर्त्तव्य पथ को पार कर मैं एक नया सृजन लिखूंगा  तू ही मन का चैन सा अब आखिरी सी सांस है  जो कभी अपना लगा कभी हो पराया प्रीत है