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Showing posts from November 28, 2021

नसीबों का खेल

 वो जो अपना है  सदा अराअरी में रहा  भावनाओं का कोई मोल नहीं  वो औरों की तीमारदारी में रहा  वो जो चितचोर है  सदा मुसाफिरी में रहा  शाम से पावड़े बिछाये हैं  वो औरों की टहलबाजी में रहा  वो जो पराया है  सदा अपनों में ही रहा  बरसों सजाते रहे सपने जिनके  वो हमको हर बार बस आजमाता रहा  ये नसीबों का ही खेल है  सदा आधा अधूरा ही रहा  किसी को नसीबों से मिला वो शख्स  जिसे मैं  हाथों की रेखाओ में ढूंढ़ता रहा 

रेखाएं भाग्यों की

 इधर भी जोर लगता है  उधर भी जोर लगता है  ये रेखाएं हैं भाग्यों की  ठहरती कब हैं संग अपने  धड़कती हैं मचलती है  ख़ामोशी में बढ़ती हैं  कैसे हो गिनती यादों की  सांसे कब हैं संग अपने  मिलता है बिछड़ता है  अपनाता रूठ जाता है  ये रिश्ते भी मनों के हैं  कहाँ चलते हैं संग अपने  योजन है आकांक्षा है  अभिलाषा समर्पण की  लाखों ख्वाब आँखों में  हकीकत कब है संग अपने  कभी पाना कभी खोना  जो ठहरा है वही क्षण है   ये रेखाएं हैं भाग्यों की  ठहरती कब हैं संग अपने 

दूर एक छोर

कोई उम्मीद नहीं सिवाय इसके  तेरे मन में रहूँ अजनबी बन सदा  कभी मुड़कर जो देखना पड़े तुझे  उन ख्यालों का एक चेहरा हूँ मैं सदा  विश्वास सुदृढ़ सा हो जाता है तब  जब वो कहता है उम्मीदें मत बांधना  खींचता है एक धुर्व मनों के  वो भी  साथ हों मिल पाएं ये जरूरी कब था  वर्षों की  सीमा तय हैं मन में  कुछ फर्ज निभाने तुमने हमने  उम्मीदों की अजनबी साख पर  देर दूर एक छोर उजाला आएगा 

काफी है

 एक तेरी हंसी काफी है  उन उदासियों के जबाबों को  यूँ तो गम और भी होंगे   बेवज़ह खुश रहने की वजह तू है  एक तेरी छुवन ही काफी है  इन थकावट की रातों को  यूँ तो अहसास और भी होंगे  बेपरवाह चाहते रहने की वजह तू है  एक तेरा होना ही काफी है  इस जीवन के मतलब को  यूँ तो मायने और भी होंगे  बेउम्मीद भी बढ़ने की वजह तू है 

संग जीवन

 वो कहता कम,  जानता सब है  मुझे उसकी जरूरत है  वो ये मानता कब है  मेरे हर अनुनय को  मना कर मान जाता है  मुझे उसकी कमी सी है  वो ये जताता कब है  वो हँसता है नादानी पर  संकल्प पर रूठ जाता है  मुझे संग जीवन जीना है  वो ये जानता  कब है वो सुनता है कहता है  दिनों चुप बैठ जाता है  मुझे हर पल जो कहना है  वो ये सुनता कब है 

देवस्थानम बोर्ड भंग

देवस्थानम बोर्ड भंग करना सरकार की बाध्यता बन गयी थी और ऐसा कर धामी जी ने अपने को थोड़ा शसक्त तो किया है  । खासकर केदारनाथ क्षेत्र में  देवस्थानम बोर्ड भंग करवाने  का श्रेय उसका विरोध कर रहे उन सब युवाओ को जाता है जो बिना किसी लीडरशिप के अकेले अकेले खुद की समझ से अपनी अपनी लड़ाई लड़ती रहे । ये सब वही  युवा हैं जिन्होंने एक नयी राजनीती को जन्म दिया है । खुलेआम सरकार का विरोध करना, जब कोई बड़ा नेता  किसी भी पार्टी का साथ नहीं था तब सोशल मीडिया पर इस मुद्दे को ठंडा न पड़ने देने, कभी   ठंड में नंगे  बदन तपस्या करना , कभी पूर्व मुख्यमत्री को मर्यादा में रहकर केदारनाथ के दर्शन से रोकना , कभी सतपाल महाराज को मोदी की केदारनाथ यात्रा में शामिल न करवाने के लिए अड़  जाना , कभी दिल्ली से कभी  जयपुर , कभी हरिद्वार तो कभी जोशीमठ, गोपेश्वर , टेहरी से देवस्थानम बोर्ड के विरोध में खड़े ये युवा दिखे तो मन इस बात के लिए जरूर खुश हुआ की ये युवा नयी राजनीती को जन्म जरूर देंगे।  ये जीत उन सब युवाओ की ही  है जिन्होंने राजनैतिक पार्टियों के बंधन से अलग धार्मिक   सामजिक, सांस्कृतिक हित को महत्व दिया।   दूसरी और