रेखाएं भाग्यों की

 इधर भी जोर लगता है 

उधर भी जोर लगता है 

ये रेखाएं हैं भाग्यों की 

ठहरती कब हैं संग अपने 


धड़कती हैं मचलती है 

ख़ामोशी में बढ़ती हैं 

कैसे हो गिनती यादों की 

सांसे कब हैं संग अपने 


मिलता है बिछड़ता है 

अपनाता रूठ जाता है 

ये रिश्ते भी मनों के हैं 

कहाँ चलते हैं संग अपने 


योजन है आकांक्षा है 

अभिलाषा समर्पण की 

लाखों ख्वाब आँखों में 

हकीकत कब है संग अपने 


कभी पाना कभी खोना 

जो ठहरा है वही क्षण है  

ये रेखाएं हैं भाग्यों की 

ठहरती कब हैं संग अपने 

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