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Showing posts from January 30, 2022

लब

 वो लब जो खुले नहीं  हिले नहीं बोले नहीं  छुवन का अहसास ही  मोक्ष की सी तृप्ति है  देखा नहीं सोचा नहीं  चाहा सदा माँगा नहीं  जो खुल गए मेरे लिए  एक समाहित तृप्ति है  फर्ज अब जो कर्ज है  समर्पण की बानगी  तोड़ रिश्तों की दीवारें  इस जीवन की तृप्ति है  इस पत्थर पर घिस गयी   नायब खुशबू कस्तूरी  अमरबेल सी लिपट गयी  हर रिश्ते की तृप्ति है  बँध चुका बिश्वास हूँ  बच गयी पहचान हूँ  थम गए इस सफर पर  मंजिल की सी तृप्ति हूँ 

आँखे

 कभी एक झलक भर जो  उठकर कहती थी आँखे  झुककर भी असर उनका  सदा मन जोड़ देता था  उदासी है जरा उनमें असर ये साफ़ दिखता है  कभी पूछे हज़ारों प्रश्न  जबाबों की झड़ी दी थी  आसुओं के असर उनका  सदा मन तोड़ बैठा था  तलाश है जरा उनमें  असर ये साफ़ दिखता है  उन आखों ने माना है  अर्श तक पहुँचाया है  मेरा है फ़र्ज़ दुनिया में  ख़ुशी का साथ हो मेरा  जो उनमें एक तमन्ना है  असर ये साफ़ दिखता है  मैं तुलना में नहीं कुछ भी  तू ख़ुशी की मेरी कीमत है  मुझे खोना ख़ुशी तेरी  तुझे पाना ख़ुशी मेरा  यही एक द्वन्द चलता है  असर ये साफ़ दिखता है 

ऐ मालिक

बेचैनियां परेशानियां सब  मेरी हों ऐ मालिक मन के द्वंद न हों उसके  जो मेरा है ऐ मालिक रूसबाईयां खामोशियां सब  मेरी हों ऐ मालिक अपनों से न दूर रहे वो  जो मेरा है ऐ मालिक बदहवाशियां बदनामियां सब  मेरी हों ऐ मालिक कोई उससे ना रूठे  जो मेरा है ऐ मालिक लिखना है तो फिर लिख लेना  मेरी जुदाई ऐ मालिक अपनो से वो घिरा रहे  जो मेरा है ऐ मालिक उसके दुख हों सब मेरे सुख मेरे उसको ऐ मालिक सासें मेरी उसको जायें जो मेरा है ऐ मालिक

चलचित्रों का एक सफर

 बेरंग अकेले  तन्हा चले जो डगर  मंजिलों की धूलि नहीं थी कहीं  विश्वासों के सफर मुश्किल तो थे  एक तूने आकर मुझे सम्पूर्ण कर दिया  चलचित्रों का एक सफर भी तय किया  आज केनवॉश पर रंग चढ़ाया है तुमने  लोगों की भीड़ में अकेला था हरदम  एक तुमने आकर हजूम लगा दिया  ये यात्रा है समय का उपयोग कहा  सफर अनेकों तय किये तुमसे  हर सफर पर अकेला था हरदम  हाँ तुमने आकर थाम सा दिया 

साहब हमारे

 साहब हमारे कहते नहीं हैं  सुनते नहीं हैं जताते नहीं हैं  गहराईयों में रखते हैं हमको  जिक़्रों में हमको लाते नहीं हैं  साहब हमारे अमियाँ की बौरें  खेतों की फसलें क्यारी के घोंचें लिपटे से लहलहाते हैं हमको  घरों में हमको सजाते नहीं हैं  साहब हमारे निराले बड़े हैं  दिखते नहीं हैं दिखाते नहीं हैं  सपनों में वो सजोते हैं हमको  तस्वीरों में हमको रखते नहीं हैं  साहब हमारे इमली की चटनी  चूल्हे की रोटी पालक की सब्जी  बाँहों में गुनगुना रखते हैं हमको  दुनियां को दिखते नहीं हैं 

रंग सिन्दूरी

 मैंने संग लिखा था खुशियों का  वो  रंग दे गया  सिन्दूरी  जब हुआ आलिंगन सांसो का एक रिश्ते की फिर नीव गढ़ी मैं चाँद उजाला भर लाया  वो जगमग जीवन करा गया  जब हुआ समर्पण तन मन का  इस सफर की उम्मीद बड़ी  मैं विश्वासों से भरा रहा  वो ओढ़ें लाल चुनर को था  जब हुआ मिलन आशाओं का  इस जीवन को परिभाषा मिली  मैंने सपने देखे कठिन बड़े  वो सपने की ताबीर बना  उसने रंग रचा था संदूरी मैंने रंग भरा है सिन्दूरी