साहब हमारे

 साहब हमारे कहते नहीं हैं 

सुनते नहीं हैं जताते नहीं हैं 

गहराईयों में रखते हैं हमको 

जिक़्रों में हमको लाते नहीं हैं 


साहब हमारे अमियाँ की बौरें 

खेतों की फसलें क्यारी के घोंचें

लिपटे से लहलहाते हैं हमको 

घरों में हमको सजाते नहीं हैं 


साहब हमारे निराले बड़े हैं 

दिखते नहीं हैं दिखाते नहीं हैं 

सपनों में वो सजोते हैं हमको 

तस्वीरों में हमको रखते नहीं हैं 


साहब हमारे इमली की चटनी 

चूल्हे की रोटी पालक की सब्जी 

बाँहों में गुनगुना रखते हैं हमको 

दुनियां को दिखते नहीं हैं 

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