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Showing posts from September 25, 2022

अंकिता

दो बेटियों का पिता हूँ. ....... दुनिया घूमी और देखी है फिर भी हमेशा लगता है कि मेरे पहाड़ दुनिया की सबसे खूबसूरत , शांत और सुरक्षित जगह है।  पर तब के  जिस पहाड़ की मैं आज कल्पना करता हूँ क्या वो आज भी वैसे ही खूबसूरत, शांत , सुरक्षित हैं ? 1991 के आरक्षण आंदोलन की शुरुआत के दिनों का एक छोटा सा आंदोलनकारी था और इसका मलाल हमेशा रहा कि 1991 के आरक्षण आंदोलन से पनपे राज्य आंदोलन का कभी हिस्सा नहीं बन पाया क्योंकि पढ़ाई के लिए आगरा यूनिवर्सिटी जाना हो गया। आंदोलन के आखिरी दिनों में जब पौड़ी -श्रीनगर में आंदोलन के उग्र रूप ने करीब करीब तक के सब सरकारी प्रतिष्ठान जला दिए थे , वैसे ही किसी दिन घर जाते समय  श्रीनगर में बस में पास  बैठी एक लड़की से जब मैंने पूछा था -" भूली- उतना बड़ा आंदोलन और आगजनी होती हुई तो नहीं दिखी जितनी अख़बारों में पढ़ी थी "।  बहुत गर्व से उस लड़की ने कहा था " न भाई बहुत बड़ा आंदोलन किया है राज्य के लिए सब जला दिया था --- अब राज्य मिलकर रहेगा " राज्य तो मिला पर अंकिता की हत्या के बाद मुझे बार बार उस लड़की का वो गर्व वाला  चेहरा याद आ रहा कि क्या इसलिए

कुछ सफर सुहाने

 रास्ते कहाँ सब मंजिल तक ले जाते हैं  कुछ सफर सुहाने होते हैं अफ़साने बन जाते हैं  तलाशता जीवन भर घूमता कस्तूरी सा  जंगल मोह लगा आया खुद को न पहचान सका  कुछ सपन सजोये ऐसे हैं  जो जानता अधूरे हैं  मृगतृष्णा रेगिस्तां की दौड़ दौड़ सम जाना है शहरों शहरों भटका हूँ खुद को न मैं ढूढ़ सका  कुछ गलियारे ऐसे हैं  जिनमे धसते जाना है  सूखती नदी सा समंदर कबसे दूर रहा  ताजगी हिमालय संग समेटे रहता हूँ  कुछ विश्वास हैं ऐसे   जिनके संग ही बहाना है  रास्ते कहाँ सब मंजिल तक ले जाते हैं  कुछ सफर सुहाने होते हैं अफ़साने बन जाते हैं 

अपनेपन की सरहद

 अपनेपन की सरहद होती  तो अच्छा होता  पता तो होता  कि सीमाएं रोकती हैं  स्पर्श का स्नेह कोई धागा होता तो अच्छा था  पता तो होता  की टूटने से जुड़ सकता है  खिल उठता जो बीज पड़ा है  तो अच्छा होता  पता तो होता  स्नेह कभी भी रुका नहीं है  कह जाता दो बातें तू भी  तो अच्छा होता  पता तो होता  तूने भी कुछ शुरुवात करी है  दो चित्र समेटता तू भी  तो अच्छा होता  पता तो होता  संग तेरे कैसे लगता है  मैं नदी था बह चला  सीमाएं टूटी सरहद भी  बस में कहाँ है  कि तटस्थता सीख लूँ