Posts

Showing posts from April 28, 2019

अजनबी से अजनबी का सफर

वो अजनबी जो अपना सा लगा जीवन को एक कहानी दे गया ख़ामोशी, सादगी से तेरी दोस्ती की सौगात कब तुझे अपनों में गिन गयी, होश नहीं तेरे से जुडी हर समानता यादों की जीवन रूपी नेपथ्य के  ढेरों घटनाक्रम वह दोस्त, वो अपनापन और कथाक्रम कब तू सबसे करीब आ गया, होश नहीं फिर नज़रे झुकना और  ठिठक जाना हल्की सी मुस्कराहट और दोस्तों में छुप पाना नजाकत, गंभीरता और तेरी सच्चाई कब तुझे दोस्तों में शामिल कर गयी, होश नहीं फिर तेरी साजिशें तेरे लोगो की खबरे सुना मेरे हर कदम पर तेरी शिकायतें द्वन्द, नाराजगी और रास्तो के मोड़ कब दूरियां बड़ा गए, होश नहीं फिर मेरे खिलाफ तेरे मन की आवाज़ मेरे अपनेपन से  तेरी असहजता गैर, छलावा और सबपर बिखरती हंसी कब फिर अजनबी कर गयी,  होश नहीं ........दोस्त!!!!!

ये शामियाना

तुझसे शुरु हुई कुछ लघु कथायें  जीवन मे एक नया आयाम दे गयी  साथ कौन था तुझमें मुझमे ये ज़रूरी नही  ये कुछ बिसरी कहानियों को पूरा कर गयी वो लगाव , शान्ति और फिर तेरा अपनापन टूटने बिखरने का डर और वो बेरुख़ी  हम सब की आशियानों तक की तलाश  कुछ घरौन्दों को एक रुप दे गयी  अखरता है कुछ तो हर पल मन में  यूँ यादें घूम आती है तेरे लब्जो के पार इत्तफ़ाक़ ही था वो ढलती शाम का जुगुनु जानता था अजनबी! ...फिर भी मन मे घर कर गया तेरा मुझे जानना और मेरा तुझे समझना  तेरे आत्मसम्मान और मेरे भरोसे को चटक गया  शामियानों मे किसी विश्वास की नींव  न गहरी हुई है न सुदृढ़ ही अजनबी!!! 

तु मेरे लिए

सच्चाई का प्रतिरूप था  गम्भीर विषयों की  कोई चर्चा बढते सफ़र का स्नेहशील पड़ाव  और तु मेरे मन का विश्वास था छोटी सी प्रगति मे साथ था अनकहे ही सबकुछ बांटना  गीतों मे अकेलेपन का साथ तु विश्वासघात मे बटता सा दर्द था दूरियाँ का किसने सोचा था? हिमालय से सागर का सफ़र  बेरंग रंगों का अपना इन्द्रधनुष तु मेरे लिए गंगा सा पवित्र  था 

करते करते

देखा है तेरी नाव लहरों मे गोते खाते देखा है तेरे शब्दों को मिटते हुऐ  अहसासों पर विश्वास करते करते हर विश्वास को झूठा पाया  देखा है तुझे गुमसुम, कभी चहचहाते जिनसे दूर बताता था उनके पास जाते  सादगी पर विश्वास करके करते  हर सादगी मे एक चालबाज़ देखा  देखा है तेरी नज़रों को झुकते  देखा है तेरा क़दमों को ठिठकते  सच्चाई पर विश्वास करते करते हर सच्चाई से एक धोखा मिलता पाया 

कभी नही

वो जो ख़ंजरों के निशान हैं मेरी पीठ पर कभी किसी से कोई बयां किया नही  ज़माने भर को जो पढ़ता पढ़ाता गया उसमें कभी मुझको पढ़ा नही  वो जो गिनता रहा मेरी शैतानियाँ  वो कृष्ण सा कभी बना नही  जो चलाता रहा हर बाण मेरी ओर उसने मुझको निशश्त्र देखा नही  वो जो पूछता रहा मेरी बात सभी से कभी मुझसे कोई बात किया नही  वो जो नज़र फेर के चला गया उसके पदचापों को कभी  सुना नही 

धोखा लगा

ये शहर भी अपना था कभी जो उजाड़ सा दिया गया जिन फूलो को तू सम्मान मान बैठा था वो भी कागज़ के ही निकले यूँ लुढ़कते हुए उस हिमालय से अरमानो की एक जागीर लिए जिस गर्व की तलाश मैं निकला था कभी वह सब तुझ पर आकर चूर हुआ भावनाओ के मर जाने का दुःख नहीं हैं कभी तेरा खजाना हैं तू संभाल कर रख या बाँट दे जिस अपनेपन से मिलते थे कभी तुझे जानने के बाद वो धोखा  लगा ........

हम जैसे अक्खड़

सुना है कि वो ज्यादा परवाह से परेशान है युहीं वो आजकल हमसे नाराज़ है इस शहर की हवा ही कुछ ऐसी है जब तक अजनबी हो पूजे जाओगे अपना बने तो क़त्ल कर दिए जाओगे सुना है कि उसके उड़ने कि तारीखे तय हैं वो युहीं सबसे मेलमिलाप बढ़ाये बैठा है ज़माने का दस्तूर ही कुछ ऐसा है अपने परयो मै फर्क न पाओगे हाँ!! दोस्त समझोगे तो छले जाओगे सुना हैं कि नज़र मिलाते हैं वो सबसे सबसे खुलकर बात करते हैं होगी कोई नाराज़गी हमसे ही शायद जो मेरे जिर्क को दूर ही रखा हैं  उसने फिर भी हाँ हम जैसे अक्खड़ और कहा पाओगे 

फ़र्क़ है इतना

तेरे और मेरे पत्थर होने मे  बस फ़र्क़ है इतना  तु भावनाऐं छोड़ के आया है  मै अहसास मार के बैठा हूँ  तेरे और मेरे दूर होने मे  बस फ़र्क़ है इतना  तु मुँह मोड़ के बैठा है मैंने दूरीयां बढ़ा ली है  तेरे और मेरे रूठ जाने में बस फ़र्क़ है इतना  तु रुसवा करके दौड़ा है  मै अपना बन सब खो बैठा  .........

ग़ैर नही

उम्मीदों की पौध हर बार नही खिलती  हर बार विश्वास की डोर सधी नही रहती  जब चारों और हों आशंकाओं की बीज स्नेह की फ़सल खड़ी नही रहती  हर सपना सच हो ये ज़रूरी तो नही  ऐसे मे सपने देखना छोड़ दें ये लाज़मी नही  पंछी जब छौडने को हो घरौंदा यहाँ  अभिमानों की दिवार खड़ी नही रहती  सबकी प्राथमिकताओं के दौड़ है यहाँ  ऐसे मे कोई रूक जाय ये मुमकिन नही यादों मे कुछ अपनेपन की झलक हो जहाँ वहाँ भावनाऐं कभी ग़ैर नही होती .....

हम कौन

सब कोई तेरे क़रीब था  बस मुझे तुने दूर रखा  या मै अलग था सबसे  या तु सबसे नज़दीक था  देखा है तुझे सबसे बातें करते बस मेरे सामने मौन रहा  या मै तेरे लिए अस्तित्व नही था  या कि तु ख़ामोश था  तेरी बात हर कोई बताता गया और मै तेरी सीमित बातें दबाये रहा  या कि हम अनभिज्ञ थे  या सबसे क़रीब थे  तेरे हर क़दम की ख़बर थी सबको  मेरे सामने तु क़दम ठिठका गया देखा है सब पर गयी है तेरी नज़र  मेरे सामने तु नज़र झुका के चल दिया 

तुझ तक है

मै सर्वस्व हार मान बैठा हूँ  फिर तु क्यों जीतने की ज़िद मे है  ये मनों का स्नेह है मजबूरी नही  तु मेरी कमजोरी समझ ले ये तुझ तक है ये नही कि तेरे हर क़दम से वाक़िफ़ हूँ  तुझसे उम्मीद है कि गैरौ से कुछ न सुनूँ  ये सम्मानों के सफ़र है हक़ नही  तु मान ले आँखें घुरती है तुझे ये तुझ तक है  तु खुशी से बढता जाये मै साथ हूँ तेरे सुनता हूँ मजबूरी तेरी तो आघात होता है ये परवाह अपनो सा है खुलुश का नही  तु गिन ले मुझे काफ़िरों मे ये तुझ तक है 

तु वो है

मै अवाक सा रहता हूँ  जब लोग तेरे बारे मै बतलाते हैं  सोचता मुझसे कितना दूर है तु क्या सच मे मेरा एहसास  मुझसे इस क़दर झूठ बोलता है  फिर सोचता हूँ मैंने कब सीमाऐं लांधी थी  या कि तेरे लिए मेरी क़द्र ही नही थी  यूँ नफ़रत कब पली होगी तेरे मन मे  क्या मैं सच मे यूँ नगंण्य था तेरे लिये या फिर मेरी नज़रें तुझे न पढ़ सकीं तु वो है जिसने मन को घेरे है हर दम तु वो है जो सम्मानों के पार है  तेरे लिए हर हार हारना चाहता था  हर सीमाऐं तोड़कर खुद जकड़ जाना था तु वो है जिसके लिए मनो का इतिहास लिखना है  ......

सपने रहने दो

बाँटना था तुझसे बहुत कुछ  बहुत कुछ था बताता तुझे पर साँझा करने का डर और उस पर तेरी ख़ामोशी  हर कोशिश को कल पर टाल गयी यक़ीन तुझपे कभी कम न था  तेरे मेरे लोगों के उद्धरण तेरी नज़ाकत की चिर परवाह  उसपर तेरी आभाओं के बदलते रुप  हर जुटे साहस को थामता गया अब तेरे जाने का वक़्त यूँ पास आता सपनों के टूटने का मक़ाम  और उन्हें साँझा करने मे समय की कमी उस पर मेरी बदमाशियां  हर सपने को सपना ही रख गया अहसास मेरा