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छाँव का विस्तार

 यूँ तो हो तुम साथ में  आवाज़ में अहसास में  हर वक़्त है कब हाथ थामे  यूँ सदा हैं आस में  हम सदा संगम पे मिलती  एक कोई नदिया रहें  मैं नाव सा ठहरा मिलूंगा  जीवन नदी संग बह चला  यूँ तो तुम हो पास में  हर साँस में अंदाज में  मैं खेत की एक मेढ़ पर  एकटक बिजूका रह गया  हम पथिक हैं साथ में  कुछ शाम यूँ चलते रहें  मैं छाँव का विस्तार फैलूँ  तू मेरा सूरज रहा