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Showing posts from September 19, 2021

बाबा (पिताजी)

 साधारण जीवन की असाधारण सोच थे बाबा (पिताजी)  मेरे हिस्से का हिमालय ढह गया जो अब कभी नहीं चमकेंगे पर उनके  जीवन से सीखी कुछ सीखें जीवन को कुछ मायने जरूर देंगी।  वो केवल पिता नहीं वो संस्थान थे  एक आदर्श सोच की। जिन्होंने सिखाया की जीवन कितना भी साधारण हो असाधारण कार्य किये जा सकते हैं।  जिन्होंने सीखाया सदैव पैसे होने, न होने से आप आम जन मानस की सेवा और सहयोग कर या नहीं कर सकते बस इसके लिए सबको अपना सा समझना होगा,   जिन्होंने सीखाया  त्याग ही जीवन का असली मतलब है, जिन्होंने सीखाया  शांति ही सबसे बढ़ा संतोष है और जिन्होंने सीखाया  की ज्ञान ही सबसे बढ़ा धन है ।   सामाजिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक, लेखन और पारिवारिक जीवन में सामजस्य बिठाने की कला के नायब उदाहरण थे पिताजी। वो जीवन के अनेक क्षेत्रो में नए मानक स्थापित करते गए पर परिवार हमेशा से उनकी प्राथमिकता रही। हम सब को अपने त्याग और परिश्रम से जितना उनके बस था उससे ज्यादा दिया ।    ये दुःख हमेशा रहेगा कि एक पुत्र के रूप में,  मैं उनके लिए कभी भी कुछ भी नहीं कर पाया । ये पीड़ मेरे हिस्से की है जो मुझे जीनी है । ये दुःख भी जीवन भर रहेगा क़ि

मेरे हिस्से का दर्द

 जानता हूँ  रेखाएं अधूरी  बहुत भाग्य का है लिखा कुछ बहुत ही सही  मेरे हिस्से का दर्द सहना मुझे  मेरे हिस्से के आँसू पीना मुझे  वो अधूरे रहे प्राण जाते बहुत सांसो से थमा तो गया ही नहीं  मेरे हिस्से का खोना था जीते मुझे  मेरे हिस्से आघातों को पीना मुझे   शंका जो थी वो हक़ीक़त बनी मिलते  बिछड़ते साथ था मैं कहाँ  मेरे हिस्से बही याद सैलाब सी  मेरे हिस्से का बहना रोना मुझे  याद सांसो में बहती रहेगी सदा  मान अभिमान जीवन बढ़ा जायेगा  मेरे हिस्से का जाना था मैंने यहीं  मेरे हिस्से का सबकुछ गवाना मुझे 

नीर बहा न जाए

 पत्थर मन यूँ ठोकर ये  पीड़ कहीं न जाए कठोर बना है  सदा मन ये दर्द सहा न जाए  कब आँसूं निकले ठूठों से  मिट्टी धंसा न जाए  सूखा दरिया है सदा मन  ये नीर बहा न जाए  कब खड़े रहे पहाड़ सदा  नीवों में धंसता जाए  सूना जंगल है सदा मन ये आग बुझी न जाए  कराह जीवन है चीर धरती  आवाज़ धँसीं सी जाए  छूटता आँगन रहा सदा मन  ये पहचान दबी सी जाए  वो परिभाषित मान मनों  का  कर्त्तव्य निभाए न जाए  द्वन्द रहा बीच सदा मन  खुद को खोता जाए