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Showing posts from February 24, 2019

छोटी सी

यूँ छोटी ही सही, पर खुशीयां क़रीब है। बड़े बरगद की एक साख है, छोटे ‘मन’ का प्यार है। उसमें वजूद क्यों ढूँढे  जो ख़ुद मे यूँ शामिल है ....

तु साथ हो न हो

मैने नक़ाब हटाने की, कोशिश क्या की, वो गुनहगार मान बैठा। मुखौटों का जीवन, तुमने जिया है दोस्त! मै सम्मानों की राह पर हूँ,  तेरा साथ हो -न हो, ये जरुरी तो नहीं।

द्वन्द

देखा है तुझे तेरे अपनो से बात करते, कभी मुझे चिढ़ाते  तो कभी ख़ुद चिढ़ते, मेरा बदलना यू आसां नहीं, सम्मानों के राह पे गुज़रा हूँ, फ़लसफ़ा हूँ यादों का, हाँ वो तेरा मेरा द्वन्द  सब बन्द है......

सपने

वो इमेल जो मै पूरा पढ़ नहीं पाया, वो डीपी जो खुली ही नहीं, वो मिठाई जो भेजी ही नहीं, और वो पीला सूट जो पहना ही नहीं, तभी कहता हूँ पर जीता हूँ .... सपनों की दुनिया भी अजीब है ..

तेरी तरह

पहाड की बर्फ़ीली हवाओ में, मन्द पवन से तेरे झोंकें , तुझ तक ले जाते है, जानता हूँ तुझे परवाह नहीं, तो क्या मै भी तेरे जैसे हो जाऊँ?

तु ना जाने

तु ना ही जाने तो अच्छा है, इस पथ पर क्या-क्या गुज़री है। अनायास आते तेरे ख़्यालों को, कब कब क्या क्या रुप दिये हैं। अक्षर लिख कर पूजे हैं, तुम पर जो भी गीत रचे हैं।

तुम और पहाड

मेरे पहाड़ों की सादगी देख, सुर्ख़ हैं कठोर हैं और खामोश हैं। फिर भी तुझ तक ले जाते हैं, तेरे स्नेह की वो नज़रें, और तेरी हँसी को याद दिलाते हैं। काश! कि तु भी पहाड होना सीख लेता।।

तेरे शब्द

तेरे पास शब्द न बचे रहे, ये अहसास था मुझको। अब भावनायें मर सी गयी, दुख इस बात का है ।। फिर कौन है जो बिष वृक्ष बो रहा, ये जो अजर अमर बचपना है!! क्या अब इसे भी मार दूँ?