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Showing posts from May 15, 2022

जिद्द की हार

मनों में कौन क्या जाने  परवाह हो कि न हो साथी  बहानों की बरीयता या कामों की लाचारी  तेरा मन जानता तेरी  मुझे स्नेह को  जीतना है  आज जिद्द को हार जाने दे  नहीं मिलना ये मजबूरी  या सितम तेरा है ये साथी  अपनों पर बरीयता  या दूरी का सबब कोई  तेरा मन जानता तेरी  मुझे स्नेह को  जीतना है  आज जिद्द को हार जाने दे  पनपनी डर के साये में  ये कोपल है तेरी साथी  बरसो से जीया आधा  अब संग्रह हाथ दे साथी  तेरा मन जानता तेरी  मुझे स्नेह को  जीतना है  आज जिद्द को हार जाने दे   तू जीता है सदा मेरा  मैं हारा हूँ सदा साथी  तू दौड़ा है सदा आगे  मैं पीछे भागता साथी  तेरा मन जानता तेरी  मुझे स्नेह को जीतना है  आज जिद्द को हार जाने दे  तुझी से कुछ समय माँगूं समय मेरा तेरा साथी  तेरी फैली सी दुनियां है  मैं सिकुड़ता गांव हूँ साथी  तेरा मन जानता तेरी  मुझे स्नेह को जीतना है  आज जिद्द को हार जाने दे 

जीवन तुझसे

तन-मन में तु यादों में  सांसों में विश्वासों में  राह समर्पण तुझसे है   जीवन अर्पित तुझसे है  छंदों में गीतों में तु सफ़रों में मंजिल में तु  चाहत मन की तुझसे है  मनरे जीवन तुझसे है  खोजों में अहसासों में  पाने में खोने में तु  आदि अंत जीवन में तु  सृजन निर्वाण मनन में तु 

जीना है

 एक मूरत मन बैठायी है जो तन सन्दूरी रचाये रहे   उन तस्वीरों का भी भरोसा है  जो विश्वासों के गवाह रहे  एक चमकता सा हिमालय है  जो आभा को सजाये रहे  उस समर्पण को निभाना है  जो खुद की एक पहचान रहे  एक छंद सजाती शाम है  जिसे हर पल एक इंतजार रहे  उन पल छिन पल में जीना है  जो तुझको मुझको संग रखे 

तु मेरा सामर्थ

 जब संग तेरे मैं साथ सदा  मेरे साथ तेरा  विश्वास है  जीवन जीना संग संग  फिर क्यों ये डर लगता है मुनासिब होता है जो अक्सर  मन बीच जुड़े वो  तार हैं  सोच सफर एक साथ चला है  फिर क्यों ये डर लगता है आत्म समर्पण मैं कर बैठा  सम्पूर्ण समर्पण तेरा है साथ सुलह हर दिन गुजरा है  फिर क्यों ये डर लगता है सर्वस्व जीया तु दुनिया को  लुटता सा मेरा संसार है  जीते खुद को कुछ पल सा  फिर क्यों ये डर लगता है दो धारा मिल संगम कर लें  एक राह चलें पहचान बनें  तु मेरा सामर्थ बने और  मैं तेरा अधिकार बनूँ