Posts

Showing posts from May 5, 2019

माँ

माँ  है रस की छन्द पहेली माँ दादी की पुडिया सी माँ आँगन की तुलसी है  माँ फूलों की क्यारी सी  माँ है मन का निश्छल प्रेम माँ उपवन के माली सी माँ बरसों की बिरासत है मां ख्याबों की मंज़िल सी माँ है सब तीर्थों का रस  माँ बचपन की कहानी सी माँ है अपना पुस्तक ज्ञान माँ व्यास की गीता सी  माँ तु है जन्मों का बन्धन  माँ ख़ुशियों की कुंजी सी  माँ बिन सूना है सब कुछ माँ ही अपनी दुनियाँ सी 

दो नैना

                  वो दो नैना उस चंचल के नभ मण्डल मे सबसे सच्चे थे अधरों के उपर सजे हुए थे  मेघों से वो घिरे हुऐ थे  सावन की सी रातों के                               वो दो नैना उस चंचल के  वो जाम सुरा से लगते थे उन्हें पीना भी हम चाहते थे  उस जाम को छूना चाहते थे वो ना जाने किस हाल मे है                जो थे वो दो नैना उस चंचल के बरसात जो उनमें आते थे  रोके वो न रुक पाते थे  उसे रोकना भी हम चाहते थे  उस बरसात मे भीगना चाहते थे                    वो दो नैना उस चंचल के  वो मेघ भी झूठे बरसे थे वो जाम सुरा के झूठे थे जिन्हें पीना भी हम चाहते थे  वो सबके सब ही झूठे थे                जो थे वो दो नैना उस चंचल के 

जाने क्यूँ

जाने क्यों लोग तेरी बातें बता जाते हैं हर महफ़िल मे तेरा ज़िक्र कर जाते हैं लाखों शंकायें मेरे मन में डालकर तेरे साथ अपनेपन का खेल खेल जाते हैं । जाने क्यों तेरी हर बात अपनी सी लगती है जानें क्यों हर संवेदना तुझसे जोड़ जाती है  लाखों नाराजगीयां हो तुझसे भले  तेरे साथ की हर छोटी बात फसाना बन जाती है।। जानें क्यों मिलते हैं हादसे जीवन के तुझसे हर रिश्ते मे तेरे हमशक्ल मिल जाते हैं लाखों घटनाक्रम मेरे भूत से जुड़कर  मेरे साथ यूँ लुका छुपी खेल जाते है ।।।

थोड़ी देर

तु ही है जो कारवाँ मे बह गया ख़ानाबदोश ही सही ठहरता थोड़ी देर  नाराज़गी ही सही पालता थोड़ी देर  वो  ग़ुबार अंगार का सहता थोड़ी देर  हर दिखावे से उठकर मन से पूछता थोड़ी देर तु ही है जिसे निभाने थे सब से रिश्ते अजनबी ही सही मुड़ के देखता थोड़ी देर ‘जल्दी मे था’ तो क्या रुकता थोड़ी देर  वो भीड़ मे गुम था तो क्या ढूँढता थोड़ी देर हर छलावे से उठकर मन से पूछता थोड़ी देर  .........

एक सरहद तेरी है

तु सामने था कभी कुछ कहा  नही  मन के सम्मान को कभी जताया नही  तु जानता तो सब कुछ है  पर किसी ने कभी सीमाओं को पार किया नही  रिश्ते सम्मानों के वो क्या, प्रकट हो हरदम  गुमनामी के आँसू कभी किसी ने दिखाये नही तु जानता है मन का रोना ये और है सरहदों की बारूद मे कूदने से डरा नही  वो दूर खड़े रहकर तेरे आहत मन को पहचाना है संवान्तना के दो शब्द कभी किसी ने लिखे नही तु जानता है कोरे काग़ज़ का पढ़ा  ये और है मंज़िलों की एक सरहद तेरी है एक मेरी है

ज़िन्दगी बची है

फिर बात होगी फिर रार होगी युही कभी फिर मुलाक़ात होगी  यु बिछड़ने का ग़म क्यों करूँ  ज़िन्दगी कुछ और बची है अभी  फिर तुझसे शिकायतें होंगीं  यूहीं कभी किसी मोड़ पर बात होगी  सोचूगां फ़ुरसत मे कभी नाराज़गी  ज़िन्दगी कुछ और बची है अभी  फिर सुनेपन की वो महफ़िलें ख़ाली होंगीं  यूँही कभी भीड़ मे विरान ज़िन्दगी होगी  हो न सकीं बाते बाटने वाली, ग़म नही  ज़िन्दगी कुछ और बची है अभी

सब कुछ

तू जानता सब कुछ है फिर क्यों दबा सा रहता है यकीं नहीं है मेरे सम्मानों का या जहाँ से डरता है तू मानता सब कुछ है फिर हर बार क्यों नज़र फेर लेता है यकीं नहीं है मेरी सीमाओं का या खुद की सीमाओं से डरता है तू पहचानता भी सब कुछ है फिर क्यों स्नेह अजनबी है यकीं नहीं है मेरे अपनेपन का या खुद पे भरोसे से डरता है तू जताता भी सब कुछ है फिर क्यों कदम रोकता है यकीं नहीं है नजदीकियों का या दूरियों से डरता है .... ??

कल की बात

संघर्ष था, मुराद थी और एक स्वप्न था कुछ कोशिशें ब्यर्थ ही सही सब कुछ तो अपना ही था बात बस कल ही की तो थी ! लगन थी, कशिश थी और एक खिचाव था वो सिखने की जिद, नाकाम ही सही सब प्रस्थितियाँ अपनी ही थी बात बस कल ही को तो थी !! लोग थे, कुछ दोस्त थे और अपनापन था वह हॅसने की कोशिशें, रुलाती हुई ही सही सब अपने इर्द-गिर्द तो थी बात बस कल ही की तो थी !!! हर बात जो ये सोचकर कल पर छोड़ दी थी कुछ ख़ाली कलों को जमा कर गयी स्मृतियाँ सब जहां में घर कर गयी बात बस कल ही की तो थी !!!!

भावनाऐं मेरी

तुझसे नाराज़गी की तमाम कोशिशों को  हराती गयी मन की स्नेहता मेरी  तेरे अपुष्ट आचरणों और एकाकी विचारों  पर हावी रहीं वो भावनाऐं मेरी  तुम दूरियों का सीला देकर सोचते हो  अपनापन गुम सा जायेगा मेरा कहा था ना निभानें की कोई शर्त तुझतक नही निर्वाह अविरल संजोयेंगीं भावनाऐं मेरी रिश्ता सम्मानों का है नफ़रत न पाल पाया मुझसे मुझे ही दूर कर गयी नाराज़गी मेरी  कई मानक खुद ही तय किये थे निभाने को वो निभाती रहेगी भावनायें मेरी ....

क्या बीती है

सीमित शब्दों तक ही रहा हमेशा  कोई सब सीमायें पार गया  वो आवाज़ें सुनाई नही दी  केवल मन के पार गयीं  इशारों मे इतना असर कहाँ था  कोई सब दूरियाँ तार गया  वो अपनापन दिखा नही है बस केवल नज़रें जता गयीं दूरियों मे इतनी ताक़त कहॉं  अन्तर्मन का स्नेह मन से दूर रहै  कह न पायी हो ज़ुबान तो क्या जानता तु सब है हमपर क्या बीती हैं