सब कुछ

तू जानता सब कुछ है
फिर क्यों दबा सा रहता है
यकीं नहीं है मेरे सम्मानों का
या जहाँ से डरता है

तू मानता सब कुछ है
फिर हर बार क्यों नज़र फेर लेता है
यकीं नहीं है मेरी सीमाओं का
या खुद की सीमाओं से डरता है

तू पहचानता भी सब कुछ है
फिर क्यों स्नेह अजनबी है
यकीं नहीं है मेरे अपनेपन का
या खुद पे भरोसे से डरता है

तू जताता भी सब कुछ है
फिर क्यों कदम रोकता है
यकीं नहीं है नजदीकियों का
या दूरियों से डरता है .... ??

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