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Showing posts from February 11, 2024

नैपथ्य

इसी किसी नैपथ्य के पीछे कुछ आवाजें आयी होंगी  बरबर मुड जाती हैं नजरें  कुछ हिलोर मन जाती होगी यादों की बस्ती में विचरित कुछ कविताऐं गायी होंगी झुकी रही जो पलकें अक्सर कभी  नजर मिलायी होगी इसी किसी मंजर की बातें मन ने मन से की तो होंगी पूछे होंगें सवाल अधूरे कभी तो उत्तर ढूँढे होंगे