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Showing posts from October 20, 2019

तु है ही

तु कविता और गीतों में तु मन मन्दिर के दीपों में शाम सुहानी तुझसे है शहर उजाला तुझसे है  यादों में बसता अपनापन तु दीवाली की ख़ुशियों मे है  तु मुक्तक का अन्तिम शब्द तु सार मेरी कविता का है  छन्दों का सुरमय तालमेल तु अकेलेपन का साहस है  साथ चलती  तेरी यादें   तु सब अपनी  सासों मे है 

शेष है

कुछ यूँ भी होते हैं  जिससे दूर या पास मायने नही रखता  सड़क लम्बी होती है हाथ छूने की उम्मीद देखने की लालसा अन्त सा होता है सब फिर भी कुछ ख़त्म नही होता  यूँही मनो के पास बसता है  लगाव कही नही होता जुड़ाव अपनेतक रहता है रिश्तों का कोई नाम नही भरोसा फिर भी लगता है ख़्याल हँसी बिखेरता है मनन खामोश कर जाता है लालिमा स्नेह की ओढ़नी मे ख़त्म होने पर आ भी जाय पर सम्मान मन से रहता है 

क्यो सजाऊँ

वो पहाड भी तो पास नही  आसमां ने भी तो ढका नही  कलकल के कौतुहल की शान्ति ख़ाली बाज़ारों में ढूँढता कहा है  जो घर किये है मन में हरदम  उसके लिए सपनों के महल क्यों सजाऊँ फिर एक ख़्याल क्यों ने तेरी सब तस्वीरें सम्भाल लूँ  यादों की माला बना लूँ  फिर मन याद दिलाता है  जो रहता है उसमें हरदम  उसको तस्वीर में क्यों देखता जाऊँ   

रोशन चिराग

मेरी उम्मीदों के पंख उगें न उगें हवाओं के रुख का इशारा ही काफी है मंजिलों की तलाश में कुछ रोशन चिराग ही काफी हैं फसलें आशाओं  की उगें न उगें बीज के जमने असर ही काफी हैं बढ़ने की छोटी सी तलाश में ठूँठ का सहारा ही काफी हैं कुछ कर  सकें न कर सकें कोशिशों का सिलसिला ही काफी हैं हताश हाथ पर हाथ धरे न बैठें प्रयासों में गिर भी जाएँ तो काफी हैं 

घोंसला

रेत पर जो बनाये हैं हमने महल तोड़ आये वो नादां जोड़े बहर  कश्तियों पर उतारे थे सपने बहुत  माँझी मन का दरिया में दगा गया  उंचे उड़के बने थे ख़्वाब अपने पंतग  मांझा पकड़े रहे डोर छूटी मगर  ख़ाली घरों  में आवाज़ दी थी बहुत लौटकर अपना स्वर ही सुनायी दिया  उन रास्तों पे बिखरे मिले फूल कुछ समेटे बग़ैर नफस उडाकर ले गयी  मन की उम्मीद परवान चढ़ती रही तिनके का घोंसला वो बना ही नही 

बाकि रहता है

ढलती शामों  में एक से हैं  तेरे जहाज़ और मेरे पहाड जीवन की आस में अक्सर वो कौतुहल भर ही जाते हैं बढ़ती राहों मे साथ से हैं वो तेरे लोग और मेरे लोग बिछड़े हुऐ अरमानों को  सहारा मिल ही जाता है सुबह जीवन की संघर्षों में तेरी कोशिशें  मेरी कोशिशें  मंज़िले दूर अलग हो तो क्या अहसास बाकि रह ही जाता हैं