घोंसला

रेत पर जो बनाये हैं हमने महल
तोड़ आये वो नादां जोड़े बहर 
कश्तियों पर उतारे थे सपने बहुत 
माँझी मन का दरिया में दगा गया 

उंचे उड़के बने थे ख़्वाब अपने पंतग 
मांझा पकड़े रहे डोर छूटी मगर 
ख़ाली घरों  में आवाज़ दी थी बहुत
लौटकर अपना स्वर ही सुनायी दिया 

उन रास्तों पे बिखरे मिले फूल कुछ
समेटे बग़ैर नफस उडाकर ले गयी 
मन की उम्मीद परवान चढ़ती रही
तिनके का घोंसला वो बना ही नही 

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