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Showing posts from October 13, 2019

ख़ैरियत

दो बातें ख़ैरियत की पूछता हूँ चुपके से ये नही कि तु जबाब दे ये कि तु अलग है सबसे   न यादों के पंख होते हैं न हर मंज़िल का मकां है ये नही कि तुझे पाना है ये कि तुझे खोना नही है  भूलने को सब विवाद हैं किसी के बिछायें जाल हैं  रिश्तों की लिखापढ़ी नहीं ये मन की एक इबारत है 

लम्हों की मुढेंर

उन लम्हों की मुढेंरों पर  बिखरा रहा कुछ यूँही  वो लजाकर मेज़ पर पसर गया था कभी  उन दिवारों के उंचाईयो पर अटका रहा कुछ यूँही  वो ठिठकर भी जिद कर  फिर उड़ चला था कभी  रंगीन सपनों के ‘पोस्टरों’ पर  सफ़ेद रहा उसका रंग यूँही  वो अदृश्य सी छाप देकर  दूराहे पर छोड़ गया था कभी  

जीवन की पंगते

डगर मंज़िलों की यूँ दुश्वार भी नही  कोई राह दिखा गया कोई साथ चल दिया जीवन की पंगतो पर भावनाओ के अहसास ख़ाली हो भी जाय तो क्या निशाँ  बाक़ी रह ही जाते हैं  ज़मीं से जुड़ी जड़ो पर असमय  तीखे प्रहार  असर कर भी जाय तो क्या पेड़ उगना भूल नही जाते 

वो रंग बेरंग

रंग जीवन में भरती रही  वो जो बेरगं रही  तस्वीरें मन में  सूनसान राहों में गीत गाती रही वो जो बिखरी रही आशायें घर में हँसी लबों पे बिखेरती रही  वो पडी रही  यादें कोनों मे