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Showing posts from January 5, 2020

सदियाँ बीत गयी

यूँ लगा कि सदियाँ बीत गयी ज़माने की सारी रीत छूट गयी तेरी चुप्पी डराती रही यूँ लगा कि अपनेपन की छाप मिट गयी यूँ लगा की गलियाँ विरान हो गयी जड़ो से जुड़ी हुई मिट्टी बह गयी  हाँसीयें पर रहा  हरदम यूँ लगा कि सांसे साथ छोड़ गयी यूँ लगा कि फिर कोई साज़िश हुई तटबंन्ध आस की बाढ़ के भेंट चढ़ गयी  शंकाओं मन को झकझोरती रही यूँ लगा कि वो खायी फिर गहरी हो गयी  यूँ लगा कि यादें कही खो सी गयी ‘बन्दगी’ के गीतों की बलि चढ़ गयी  बिष-बीज अंकुरित हुए हैं कही  यूँ लगा कि वो फ़सल फिर हरी हो गयी 

कुछ रह जायेगा

कुछ आयेगा कुछ जायेगा कुछ थमकर बह जायेगा  साथ रहेंगी यादें सारी  रुठने मनाने की कोई बैंठेगा कोई चल देगा  कोई थमकर मुड़ जायेगा  साथ रहेंगीं बातें सारी रुठने मनाने की  कोई कहेगा कोई चुप रहेगा कोई अनजान चला जायेगा  याद रहेंगें पल वो सारे  रुठने मनाने के  कुछ रहेगा कुछ उतर जायेगा कुछ फिका पड़ जायेगा  याद रहेंगे रंग वो सारे रुठने मनाने के