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Showing posts from December 5, 2021

'बकवासें'

 हम राहों में चलकर ही  यूँहीं एक साथ आये हैं  हजारों हैं मगर इम्तिहान  हम जीतने तो नहीं आये  'कुछ भी' हैं ये 'बकवासें' जो तुझतक जोड़ती मुझको  हजारों हैं मगर सपने  सब सच तो नहीं होंगे  मीलों का सफर मेरा  न होंगी ख़त्म उम्मीदें  सागर से हिमालय तक  सब अपने साथ कब होंगे  ऊचें से कुछ मचानों पर  बना है ख्वाब जीवन का  न गिर कर जी सकूंगा मैं  न अकेले चल सकूंगा मैं  जो है कुछ पास अब मेरे  वोही काफी है जीवन का  न सपने पाके जी पाया   न खोकर जी सकूंगा मैं 

मिलकर तुझसे

 मिल जाना जीवन राहों में  तुझ बिन कोई आस नहीं है  चला पार हूँ सागर करने  नांव उतारे चाप चलाते मैं केवट एक राह निहारे  कब आवोगे पालनहारे  चला बढ़ा हूँ राह अजनबी  मंजिल बिन एक साथ तुम्हारे  सूत्र मनों के बांधें हैं जो  कुछ हैं सूत्र पहनने बाकि  रिश्तों में रंग कौन तलाशे  तेरे रंग में भीग छपकते  मिल जाना जीवन राहों में  तुझ बिन कोई जीवन कैसा   कदम कहाँ अब मुड़ पायेंगें  मिलना खोना संगम तेरे  तु सागर मत्था फिर दोहराता  नदी हिमालय बढ़ आयी है  पाना जीवन सत्य रहेगा  मिलकर तुझसे खो जाना है 

ये तय है

 वो घण्टों की बातों का निष्कर्ष एक ही है  कि भूले न भूलेंगे मनों के रिश्तें ये तय है  मंजिल मिले न मिले  ये अलग बात है  रास्तों के सफर साथ तय होंगे ये तय है  वो रूठना मानना चलना ही है सतत  मनों में बसने वाले दूर न होंगे ये तय है  रिश्तों को नाम मिले न मिले ये और है  रे मन तु पास है  सबसे  ये तय है  कल क्या होगा ये सोच अब आती नहीं   ये खुशियां जीवन संग रहनी है ये तय है  बारिश में भीगे न भीगे ये अलग बात है भावनाओं का समुन्दर उमड़ेगा ये तय है