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Showing posts from July 24, 2022

समर्पण सादगी का है

 जी भर बात करता हूँ  हर रोज आईने से मैं  चुपचाप उससे ज्यादा  किसी ने सुना भी तो नहीं  लिख देता हूँ हज़ार ख़्वाब हर रोज़ डायरियों में  खामोश उससे ज्यादा  किसी ने पढ़ा भी तो नहीं  जगता हूँ रात भर  हर रोज़ चांदनी में  एकटक उससे ज्यादा  किसी को निहारा भी तो नहीं  अनगिनत आशाएं मन की  हर रोज़ सपने सजता हूँ  चुपचाप उससे ज्यादा  मन ने किसी को माना भी तो नहीं  बहा है संग दरिया सा  हर रोज़ नहाया हूँ  सरोबोर उससे ज्यादा  किसी के संग भीगा तो नहीं  समर्पण सादगी का है  हर रोज़ एक तपस्या है  ध्यान लगाकर उससे ज्यादा  कुछ माँगा भी तो नहीं 

आप

तुझे बांध कर रख दूँ ये ख्वाईश कब है मेरी,  मैं स्नेह का बधा धागा हूँ मजबूरी का सूत्र नही हूँ मकाम तुझे तय करने हैं मैं मंजिल तक बढ आया हूँ टूटती बिखरती पगड़ंड़ी हूँ तयशुदा रिश्ता नही हूँ.... सफर लम्बा है अपना  कभी डूबता बढ़ता सही आस का क्षितिज तकता हूँ समय की कोई सीमा नही हूँ रेखाऐं ले जाती हैं तुझतक यूँ तो भाग्य का भरोसा नही पाना खोना तुझपर छोड़ता हूँ छोड़ दूँ जिद ऐसा बचपना नही हूँ