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Showing posts from September 22, 2019

बिना किसी

जो गुथां रहा धागे में पिरोया रहा एक कड़ी में  मज़बूती से विश्वास डटा रहा माला के फूल और मोती  यूँहीं बिना किसी आधार जुड़े नही रहते   जो सदैव सोच में बना रहा  गीत ग़ज़लों की लड़ी बनकर  सहूर से स्नेह बना रहा  जुड़ाव की आस और याद यूँही  बिना किसी अपनेपन के जुड़ी नही रहती 

नींव के पत्थर

बिखरे हुए मकां की  अधूरी इमारत टूटे खण्डहर बन भी जाय  तो क्या  साँचों के निशाँ  मेरे होने की गवाही देंगें  खोदना गहराई में कभी  मज़बूत नींव के पत्थर मिलेंगे  आशाओं के बिखरे आसमान पर  सबकुछ धुँधला हो भी जाय तो क्या विश्वास का अटका कोई तारा मिलेगा सोचना कहीं समर्पण कोई   गिरकर राहों मे बिछते कुछ पत्ते मिलेंगे  आशान्त पड़े समुन्दर से मन मे  सब कुछ छिन्न भिन्न हो भी जाय तो क्या  आस का तैरता कोई जहाज़ मिलेगा  उड़कर थक जाओ जब कभी    नीचे सहारा देने को कुछ पाल मिलेंगे 

तब तक

बताने को तो तजुर्बा भी था  जताने को अहसास भी था  ये  स्नेह तब तक ही सच्चा था  जब तक सबकुछ एकतरफ़ा था  छुपाने को ख़ुशियाँ भी थी  कहने को कहानियाँ भी थी  ये शाम तब तक अपनी थी  जब तक कभी रुलाती न थी  बाँटने को तो यादें भी थी  लिखने को थोडे ग़म भी थे  ये क़लम तबतक ही अपनी थी  जब तक कभी चली न थी 

मन मे हो

दीपदान जब मन का हो त्याग समर्पण मन का हो  मन जायें यादों के उत्सव  प्रकाश पुंज जब मन का हो  कुंज गली जब मन में हो गोकुल बरसाना मन में हो उग जाये सपनों के जंगलों  आस अहसास जब मन मे हो शाम सुहानी घर में हो बात पुरानी घर में है  हंसतीं हों कोने मे यादें  आशीष कहीं पर घर में हो