नींव के पत्थर

बिखरे हुए मकां की अधूरी इमारत

टूटे खण्डहर बन भी जाय तो क्या 

साँचों के निशाँ मेरे होने की गवाही देंगें 

खोदना गहराई में कभी 

मज़बूत नींव के पत्थर मिलेंगे 


आशाओं के बिखरे आसमान पर 

सबकुछ धुँधला हो भी जाय तो क्या

विश्वास का अटका कोई तारा मिलेगा

सोचना कहीं समर्पण कोई  

गिरकर राहों मे बिछते कुछ पत्ते मिलेंगे 


आशान्त पड़े समुन्दर से मन मे 

सब कुछ छिन्न भिन्न हो भी जाय तो क्या 

आस का तैरता कोई जहाज़ मिलेगा 

उड़कर थक जाओ जब कभी  

नीचे सहारा देने को कुछ पाल मिलेंगे 



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