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Showing posts from September 15, 2019

शहर की बहर

लौट आयी हैं कहीं फिर  वो खामोश शहर की बहर भिगोता है कोई नैपथ्य से  साथ लिए बरसात की लहर  किताबों के सूखे फूलों पर  वो ख़ुशबू  आयी है निखर  लिखता है कोई चुपके से साथ लिए यादों का असर रास्तों मे बिखरी शामों पर  परछाईं फैला चुकी है क़हर   हवा में उड़ी है आशाये तबसे तेरे लौटने के हर  पहर पर 

मनिहार

संवेदनाओं के सूनेपन में खुशी के गीत- ग़ज़लों का  प्रकृति के रंगों में पला-बढ़ा  मैं मनिहार सपनों का  आशाओं के फैले सागर में कमल की कोमल कुमदिनीयों सा  आस की कोंपल खिलाता हुआ मैं मनिहार सपनों का  बुग्यालो की लहराती घास में ख़ुशबू की फैली बयार का  अस्तित्व की तलाश मे भटकता मै मनिहार सपनों का  धर्म जात के भेदभावी गाँव में एकजुटता की अनदेखी आस का ख़ुशियों की गठरी थामें हुआ  मैं मनिहार सपनों को समाया बच्चों की मुस्कुराहटो में ख़ानाबदोश मंज़िलों की तलाश का  अपने हर ग़म को छुपाता हुआ मैं मनिहार सपनों का 

तलाश में

वक़्त ठहरता तो पूछता क्यो हड़बड़ी में रहता है  दौड़ना तो सबको था  मंज़िलों की तलाश में  मन पढ़ता तो पूछता  किताब मे लिखा क्या है  खोजना तो सबको था पाने की तलाश में बहता साथ तो पूछता  किनारे पर रखा क्या है  तैरना  तो सबको था पार पाने की तलाश में 

यादों मे पलता

फैली है उसकी यादें इस क़दर  मेरी कविता की किताबों पर  यूँ तो साथ चलती हैं, मिलती नही कुछ पन्नों का फ़ासला हमेशा रहा  यादें तो हैं पर शिकायतें नही कोई  मसरुफियत में हर कोई रहता है मगर मनों मे साथ चलता है एकाकी जीवन यूँ कुछ सासों का फ़ासला हमेशा रहा  वो दौर और था जब सजदे ना-गवारां रहे वैसे वो खुदा का बन्दा जुदा भी न था  दूरियाँ तय कर ली हैं मंज़िलों ने बहुत  यादों मे पलता एक फसाना हमेशा रहा 

बयार

हिमालय की पिघलती बर्फ बनकर बहती धरा सृष्टि में जीवन देने वाली हर बयार को जगा जाती है झुरमुटों में चहकती आवाज़ मन पर दस्तक देकर स्नेह को झकझोर करने वाले हर अहसास जगा जाती है अकेली शामों का सूनापन अँधियारों को चीरता हुआ ख्यालो में अवतरित होने वाली हर शंकाओ को मार जाता है 

कोई टूटता तारा

मन्नतों के आसमान पर कोई टूटता तारा मन से निकलने वाली हर दुआ को जगा जाता है कंकरीली बंजर जमीन पर कोई  उगता बीज संघर्षो के जीवन वाली हर आस को जगा जाता है इतिहास के पन्नो पर कोई भूली बिसरी तारीख समय  को छोड़कर जाने वाली हर याद को जगा जाती है 

आपके अभाव में

मन कभी जीया नही  कामना के प्रभाव में गीत गुनगुनाता रहा  आपके अभाव में  यूँ तो पास थे बहुत साथ की तलाश में  मन कचोटता रहा  आपके अभाव में गीत थे लिखे बहुत  प्रेरणा थी याद में  काग़ज़ उतारता रहा आपके अभाव में  कामधाम थे बहुत जीवन की दौड़भाग में क़लम थामता रहा आपके अभाव में